Sunday, July 28, 2019

मनमर्जियों की बेल लहलहा रही है


कोरी हथेलियों को देखती हूँ तो देखती ही जाती हूँ. कोरी हथेलियों पर मनमर्जियां उगाने का सुख होता है. मनमर्जियां...कितना दिलकश शब्द है लेकिन इस शब्द की यात्रा बहुत लम्बी है. आसानी से नहीं उगता यह जिन्दगी के बगीचे में. इस शब्द की तासीर सबको भाती है लेकिन इसे उगाने का हुनर कमाना आसान नहीं. और यह आसान न होना मनमर्जियो के माथे पर तमाम इलज़ाम धर देता है.

जिसने सीख लिया मनमर्जियां उगाना उसे हर पल सींचना पड़ता है इसे पूरी लगन से, शिद्दत से, सींच रही हूँ जाने कबसे. इन दिनों बारिशें हैं सो थोड़ी राहत है, सींचना नहीं पड़ता खुद-ब खुद-बढ़ रही है मनमर्जियों की बेल. मैं चाहती हूँ यह आसमान तक जा पहुंचे, हर आंगन में उगे. लडकियों के मन के आंगन में तो जरूर उगे.

अबकी बारिशों में खूब भीगना हो रहा है, लगभग रोज ही. निकलती हूँ घर से तो साथ हो लेती है बारिश...साथ ही चलती जाती है. रात होती है सरगम सी घुलती जाती है इसकी आवाज़ और सुबह चेहरे पर छींटे मिलते है बेहिसाब. रेनकोट बेचारा इग्नोर फील कर रहा है.

एकदम हरी सुरंग से हो रहे हैं रास्ते, बादल आँखों के सामने खेलते रहते हैं. पहाड़ियां मुस्कुरा रही हैं, फूल बारिशों में नहाये हैं, थिरक रहे हैं. चमकती हैं हीरे की कनी से बूंदों पर अटकी बूँदें. ये जिन्दगी कितनी खूबसूरत है. मैं बारिशों को पी जाना चाहती हूँ.

अक्सर पाया है कि जब हम जीवन को कोस रहे थे जीवन बड़ी उम्मीद से हमें देख रहा था.

मेरी मनमर्जियों की बेल कई दोस्तों के कांधो का सहारा लेकर भी बढ़ रही है, उसमें अब बूंदों वाले फूल उग रहे हैं. भीगे-भीगे फूल. राग मालकोश की धुन बज रही है कहीं...

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. चहकती रहे और महकती रहे ये फसल आपके जीवन में..इस मुल्क के जीवन में..खुद मुख़्तार हो जाएँ हम..बनें सहारा इकदूजे का न कि ढूँढे कोई कंधे सहारे के लिए..

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  4. वाह बहुत सुंदर सृजन।

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