बहुत चुपके से
बैठ जाता है वो
एकदम करीब आकर
पूछता नहीं तुम्हारी रज़ा
न देखता है उम्र
न समय, न हालात
वो जानता है कि तुम्हें
नहीं था उसका इंतज़ार न
बल्कि चिढ़ते ही थे तुम
उसके जिक्र से
फिर भी वो तुम्हारे काँधे से लगकर
एकदम सटकर बैठ जाता है
सामने डूबता सूरज
उगने लगता है तुम्हारे भीतर
कि तुम्हारी पूरी दुनिया बदलने लगती है
डरी सहमी आँखों में साहस तैरने लगता है
उदासी बाँधने लगती है पोटली
लौट आती हैं तमाम
अधूरी ख़्वाहिशें
तुम्हारी 'हाँ' या 'न' की परवाह किये बगैर
वो आता है और
चला जाता है तुम्हें साथ लेकर
हाँ, बिलकुल इसी तरह आता है प्रेम
और ठीक इसी तरह आती है मृत्यु।
और ठीक इसी तरह आती है मृत्यु।
सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
हाँ, बिलकुल इसी तरह आता है प्रेम
ReplyDeleteऔर ठीक इसी तरह आती है मृत्यु।
सत्य ,मृत्यु और प्रेम कब दबे पाँव आता है पता ही नहीं चलता ,बहुत खूब.....
Very nice post Keep It Up good Work
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
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