बच्चे गान्ही बाबा के जयकारे लगा रहे हैं
लाइन लगाकर घूमने आये हैं गाँधी पार्क
हालाँकि बच्चों की नजर गुब्बारे वाले पर है
और शिक्षिका की नजर बच्चों की संख्या पर
गांधी बाबा सिर्फ जयकारों में हैं
कुछ लोग छुट्टी मना रहे हैं गांधी बाबा के जन्मदिन पर
देर तक सोने और सिनेमा देखने जाने की योजना के साथ
कुछ ने धूल साफ़ की है चरखों की अरसे बाद
पहनी है गांधी टोपी
और कात रहे हैं सूत
ठीक गाँधी प्रतिमा के नीचे
फोटो के फ्रेम में एकदम ठीक से आ रहे हैं वो
तमाम राजनीतिक दल मना रहे हैं गांधी जयंती
पार्टी के झंडों और भाषणों के साथ
भाषण जिनकी भाषा में ही है हिंसा
हालांकि दोहरा रहे हैं वो बार-बार शब्द 'अहिंसा'
तमाम राजनीतिक दल मना रहे हैं गांधी जयंती
पार्टी के झंडों और भाषणों के साथ
भाषण जिनकी भाषा में ही है हिंसा
हालांकि दोहरा रहे हैं वो बार-बार शब्द 'अहिंसा'
तैनात है तमाम पुलिस और पुलिस की गाड़ियाँ
गांधी जयंती के अवसर पर
मालाएं बार-बार चढ़ उतर रही हैं
गांधी प्रतिमा लग रही है निरीह सी
जो वो प्रतिमा न होती गांधी होते तो
तो शायद चले गये होते इस तमाशे से बहुत दूर
या खेल रहे होते बच्चों के संग
लेकिन वो प्रतिमा है और उसे सब सहना है
गांधी जयंती के अवसर पर
मालाएं बार-बार चढ़ उतर रही हैं
गांधी प्रतिमा लग रही है निरीह सी
जो वो प्रतिमा न होती गांधी होते तो
तो शायद चले गये होते इस तमाशे से बहुत दूर
या खेल रहे होते बच्चों के संग
लेकिन वो प्रतिमा है और उसे सब सहना है
एक बच्ची पूछती है अपने पिता से
'पापा, गांधी जी तो कहते थे किसी को मारो नहीं
फिर इतनी पुलिस क्यों है?'
पिता के पास सिर्फ मौन है
बच्ची इस शोर से दूर पार्क में उछलती फिर रही है
हर सिंगार के पेड़ों ने फिजां को खुशबू से
'पापा, गांधी जी तो कहते थे किसी को मारो नहीं
फिर इतनी पुलिस क्यों है?'
पिता के पास सिर्फ मौन है
बच्ची इस शोर से दूर पार्क में उछलती फिर रही है
हर सिंगार के पेड़ों ने फिजां को खुशबू से
और रास्तों को फूलों से भर दिया है
मैं इन पेड़ों के नीचे धूनी जमाये हूँ
ये जो बरस रहे हैं न
नारंगी डंडी और सफ़ेद पंखुड़ियों वाले फूल
ये प्यार हैं,
मैं इन पेड़ों के नीचे धूनी जमाये हूँ
ये जो बरस रहे हैं न
नारंगी डंडी और सफ़ेद पंखुड़ियों वाले फूल
ये प्यार हैं,
इनकी खुशबू में तर रहना चाहती हूँ
टप टप टप गिरते फूलों के नीचे महसूस करती हूँ
कभी सर, कभी काँधे पर गिरना फूलों का
टप टप टप गिरते फूलों के नीचे महसूस करती हूँ
कभी सर, कभी काँधे पर गिरना फूलों का
चुनने को फूल झुकती हूँ तो झरते हैं फूल मुझसे भी
कि कुछ ही पलों में मैं खुद हरसिंगार हो चुकी हूँ
कि कुछ ही पलों में मैं खुद हरसिंगार हो चुकी हूँ
दूर कहीं लग रहे हैं गांधी बाबा के जयकारे
जबकि मैं और वो बच्ची हम दोनों हरसिंगार चुन रहे हैं
हम दोनों की मुस्कुराहटों में दोस्ती हो गयी है.
हम दोनों की मुस्कुराहटों में दोस्ती हो गयी है.
(आज सुबह, गांधी जयंती )
पर पता नहीं अभी तक रुपिये से क्यों नहीं हटाये जा (जा पा रहे हैं ) रहे हैं?
ReplyDeleteसटीक।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-10-2018) को "नहीं राम का राज" (चर्चा अंक-3113) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.10.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3114 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बस कागज के रंग बिरंगे टुकड़ों में प्यारे लगते है सबको बापू
ReplyDeleteबहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति