Sunday, November 12, 2017

जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ



जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ तो
पल भर को थम जाती है धरती की परिक्रमा
बुलबुल का जोड़ा मुड़कर देखता है
टुकुर टुकर

लीची के पेड़ के पत्तों पर से टपकती बूँदें
थम जाती हैं कुछ देर को
जैसे थम जाती हैं मुलाकात के वक़्त
प्रेमियों की साँसे

जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ तो
नदियों की कलकल में एक वेग आ जाता है
जंगलों के जुगनुओं की आँखें चमक उठती हैं
सड़क के मुहाने पर फल बेचने वाली बूढी काकी
सहेजती हैं फलों की नमी

जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ तो
बढ़ जाती हैं बच्चों की शरारतें
गिलहरियों की उछलकूद
ज्यादा गाढे हो जाते हैं फूलों के रंग
और मीठी लगने लगती है बिना चीनी वाली चाय

जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ
चरवाहे के गीत गूंजने लगते हैं फिजाओं में
शहर की टूटी सड़कें भी गुनगुना उठती हैं
प्यार में टूटे दिलों की धडकनों को
मिलता है कुछ पलों को आराम

जब मैं तुम्हें पुकारती हूँ
होंठों से नहीं निकलता कोई भी शब्द
फिर भी सुनती है
पूरी कायनात...

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