ठीक उस वक़्त जब आप देख रहे होते हैं
ढलता हुआ सूरज
और महसूस करते हुए अपने भीतर
उतरता हुआ कोई गहराता अकेलापन
चाय की प्यालियों के ठीक बगल में बैठकर
चुपके से मुस्कुराता है सितम्बर का प्यार
वो बदलते मौसम की करवट बन आता है
और उम्र भर के लिए
ठहर जाता है जीवन में
प्रेम का मौसम बन
आकाश से झरती नर्म चांदनी बन
रोयों पर बैठ जाता है
और सजदे में झुक जाता है
कायनात का ज़र्रा ज़र्रा
वो नजर से नज़र चुराकर चलता है साथ-साथ
नज़र आता भी नहीं,
दूर जाता भी नहीं
रास्तों में फूल बनकर बिखर जाता है कभी
तो कभी चढ़ जाता है
वनलता बन दरख्तों पर लहराते हुए
खेतों में धान की फसल बन लहलहाता है
तो रहट की आवाज़ बन कानों में घुल भी जाता है
चुप्पियों में खूब बोलता है सितम्बर का प्यार
आवाजों में खामोश हो जाता है
टहनियों में टंगे चाँद को ताकता है रात भर
ओस बन फूलों पर बरसने को समेटता है
जमाने की बची खुची नमी
दरवाजे पर दस्तक कोई नहीं
न आहट कोई
बस सिरहाने रखी 'नदी के द्वीप' पर
लगने लगा है स्मृतियों का ढेर.
वो जुलाई से करता है अभ्यास आने का
अगस्त में जुटाता है हिम्मत धीरे-धीरे
सितम्बर में दाखिल होता है हिचकते हुए
और मध्य सितम्बर में सकुचाते हुए
छलक ही पड़ता है पलकों की कोरों से
फूट पड़ती है सदियों से रुकी रुलाई
और कायनात डूब जाती है असीम सुख में
नजर कोई नहीं आता दूर तक फिर भी
कलाई का श्यामल रंग गुलाबी हो उठता है
महक उठते हैं जीवन के सारे सितम्बर
सितम्बर के प्रेम का
पूरे ग्यारह महीने इंतजार करती है सृष्टि
तो कभी चढ़ जाता है
वनलता बन दरख्तों पर लहराते हुए
खेतों में धान की फसल बन लहलहाता है
तो रहट की आवाज़ बन कानों में घुल भी जाता है
चुप्पियों में खूब बोलता है सितम्बर का प्यार
आवाजों में खामोश हो जाता है
टहनियों में टंगे चाँद को ताकता है रात भर
ओस बन फूलों पर बरसने को समेटता है
जमाने की बची खुची नमी
दरवाजे पर दस्तक कोई नहीं
न आहट कोई
बस सिरहाने रखी 'नदी के द्वीप' पर
लगने लगा है स्मृतियों का ढेर.
वो जुलाई से करता है अभ्यास आने का
अगस्त में जुटाता है हिम्मत धीरे-धीरे
सितम्बर में दाखिल होता है हिचकते हुए
और मध्य सितम्बर में सकुचाते हुए
छलक ही पड़ता है पलकों की कोरों से
फूट पड़ती है सदियों से रुकी रुलाई
और कायनात डूब जाती है असीम सुख में
नजर कोई नहीं आता दूर तक फिर भी
कलाई का श्यामल रंग गुलाबी हो उठता है
महक उठते हैं जीवन के सारे सितम्बर
सितम्बर के प्रेम का
पूरे ग्यारह महीने इंतजार करती है सृष्टि
सितम्बर के प्यार से हाथ भले छूट जाए
लेकिन वो साथ कभी नहीं छोड़ता।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
आत्मा से महसूस की गई पंक्तियां
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहद शानदार
ReplyDeleteटहनियों में टंगे चाँद को ताकता है रात भर
ReplyDeleteओस बन फूलों पर बरसने को समेटता है
जमाने की बची खुची नमी
वाह!!!
बहुत सुन्दर सरस मनभावन सृजन।