Thursday, September 17, 2015

प्यार - ३



राख समझकर छोड़ गए जो
सारे फूल वहीँ खिले

मौन समझकर लौटे जहाँ से
सारे शब्द वहीँ उगे

पतझड़ समझकर झाड़ा किये जिसे
सारे मौसम वहीँ खिले

बंद गली ने रास्ता रोका
सारे रास्ते वहीँ मिले 

प्यास जहाँ पे अटकी, भटकी
सारे झरने वहीँ झरे

तय किये फासले जितने ही
उतने और करीब हुए.… 


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