Sunday, July 5, 2015

कॉपीराइट वाली मुस्कान..



लड़का हर शाम उसकी पलकों की जाग को नींद की चादर ओढ़ाकर सुभीते से  विदा लेता। उसके सिरहाने अपनी खुशबू  रखता और बेहद आहिस्ता से रुखसत होता। वो सारी रात चाँद से, बारिश से या हवाओं से गुज़ारिश करता कि लड़की की जाग पर वो जो नींद की चादर ओढ़ाकर आया है, उसे सब मिलकर सहेजे रखें । लड़की की सदियों की जाग का उसके पास कोई उपाय नहीं था,  कुछ प्रयास थे जिन्हें वो करते रहना चाहता था. लड़का कभी उसके सिरहाने सारी रात बैठकर उसे सोते हुए देखना चाहता तो लड़की उसे वापस भेज देती ये कहकर कि ' तुम्हारे होने से तुम्हारे होने का एहसास टूटता है'. लड़का एहसास बचाना ज़रूरी समझता और चला जाता।

लड़की की जाग पर स्मृतियों की पहरेदारी थी. वो नींद की चादर के भीतर करवटें बदलती रहती और स्मृतियों की चुभन को महसूस करती रहती. लड़के की कोशिश नाकाम हुई ये सोचकर उसका दिल न टूटे इसलिए सुबह वो लड़के को अपनी गहरी मुक्कमल नींद का यक़ीन दिलाती।

लड़की को रात को प्यास लगती लेकिन वो अपनी प्यास को नींद की चादर में समेटे रहती। वो अपनी जाग तो समेट सकती थी लेकिन नींद की चादर से बाहर निकलने पर सिरहाने रखी लड़के की खुशबू के बिखरने का जोखिम वो नहीं ले सकती थी.  लड़का हर रोज नींद की चादर ओढाते हुए उसके कान में कहता कि सुबह की पहली किरण से पहले वो उसकी पलकों को अपनी हथेलियो से ढँक लेगा। लड़की उन हथेलियों को अपनी पलकों पर महसूस करने के लिए सारी रात अपनी प्यास को समेटे रहती।

नींद बाहर होती तो ज़रूर आती, नींद तो भीतर थी अधूरी उचटी,  उखड़ी,  बेचैन नींद। हर नींद अपने भीतर इतने किस्से लिए होती कि नींद अपने ही भीतर समाये किस्से सुनने को उठ बैठती। आँखें कड़वी होने लगती लेकिन किस्से खत्म ही न होते।

नाना जी की कहानियों से लम्बे किस्से. दुनिया की सबसे सुन्दर राजकुमारी के किस्से और उस खतरनाक राछस के किस्से। आधी रात तक किस्सों के बीच की हुंकार और  खिंचते जाते किस्से. किस्से ख़त्म नहीं होते, जाने कब.… नींद झरती किस्से की जगह हम  माँ की गोद में लुढक जाते. जाने वो किस्सा सपना थे या नींद। जो भी था लेकिन नाना जी मुस्कुराहट सच्ची थी बिलकुल लड़के के मुस्कुराहट की तरह. उसकी नन्ही सी कोमल सी मुस्कान, जिसके एक सिरे पर कोई झरना ठहरा हुआ मालूम होता और दूसरी तरफ फूलों की घाटी।

लड़की ध्यान से याद करती नाना जी की मुस्कराहट को. जो अक्सर चाय में चीनी कम होने की शिकायत करते वक़्त खिलती थी, या गुलगुले खाने की फरमाइश के वक़्त। लड़की को लड़के की और  नाना जी की मुस्कुराहट एक जैसी लगती।

वो अपनी बात को कन्फर्म करने माँ के पास जा पहुँचती। नाना जी की मुस्कान को कागज पे उतारती और लड़के की मुस्कान को भी. उसे दोनों एक सी लगतीं। नाना जी नींद के लिए किस्सों की चादर ओढाते थे और लड़का अपनी नींद की चादर ओढ़ाकर नए किस्से गढ़ने लगा था.

लड़की अपनी जाग में विचरती थी लेकिन ठीक सुबह की पहली किरण के उगने से पहले नींद पलकों पे रख लेती। उसे अपनी पलकों पर लड़के की हथेलियों की छुअन से जागना इतना अच्छा लगता था कि वो सारी उम्र सोने और जागने के खेल में जिंदगी बिता देना चाहती थी.

कभी हथेलियों की छुअन सूरज की किरण से हार भी जाती थी लेकिन तब वो सूरज की किरण की ओर से मुंह फेरकर तब तक सोयी रहती जब तक लड़के की आहटें उसके कानों तक न आ पहुंचतीं। ये जाग का और नींद का एक खेल था.

एक रोज हथेलियों को पलकों पे महसूस करने के इंतज़ार में दोपहर हो गयी. लड़की उसी नींद की चादर के भीतर अपने दोनों घुटनों के बीच अपना सर फंसाये लेटी रही. कितने बुलावे आये वो नींद की चादर से बाहर न निकली. उसकी पलकें इंतज़ार में थीं. बिना पलकों पर एक छुअन उगे उसका दिन उग ही नहीं सकता था. बुलबुल, मैना, तोता, कबूतर सब आये लेकिन लड़की धुन की पक्की थी और वादे की भी. लड़का जिंदगी के ट्रैफिक जाम में फंसा रहा और लड़की नींद की चादर के भीतर अपनी प्यास में सुलगती रही.

मौसम उसके माथे पर हाथ फेरकर जाते रहे लेकिन लड़की न उठी. मौसम बीते, बरस बीते न लड़की की सुबह हुई न लड़की की नींद की चादर हटी.

एक रोज आषाढ़ की तेज़ बारिश वाली रात में कोई मुसाफिर वहां ठहरने को रुका। किसी ने उसे सोने को जगह तो दे दी लेकिन ताकीद के साथ कि इस घर में नींद नहीं आ सकेगी उसे. मुसाफिर ने कहा उसे नींद नहीं थोड़ी बर्फ चाहिए, उसकी हथेलियों में बहुत जलन है। पडोसी बर्फ लाने गया. मुसाफिर बेसब्र बेचैनी में घर में भटकने लगा. वो किसी गहन पीड़ा में था. बेचैनी में उसने लड़की की नींद की चादर खींच ली और उसे कहा मुझे बर्फ चाहिए। बहुत जलन हो रही है. लड़की अपनी उनींदी जाग में बुदबुदाई प्यास.... मुसाफिर  ने बिना उसकी और देखे उसे जगाने के लिए उसकी पलकों को छुआ.

लड़की ने आँखें खोलीं, 'कितनी देर कर दी तुमने आने में',

नींद की उस उधड़ी चादर के बीच लड़की की प्यास टूट चुकी थी. लड़की ने पलकों पर उस छुअन को महसूस किया, मुस्कुराई और बुदबुदाई नाना जी की मुस्कान बहुत अच्छी थी, तुम्हारी तरह. एक बार मुस्कुराओ न, आषाढ़ की मूसलाधार बारिश के बीच उस मुसाफिर लड़के ने भीगी हुई पलकों से मुस्कुराते हुए कहा, कितने बरस हुए मुस्कुराये। लड़की ने अपने प्यासे  होंठों पर पानी की बूँद महसूस की. लड़के ने अपनी हथेलियों की जलन कम होते महसूस की.

जिंदगी का ट्रैफिक जाम अब भी वैसा ही था, लेकिन लड़का सारे  ट्रैफिक सिग्नल तोड़ चुका था. लड़की एक गहरी नींद में जा चुकी थी लड़का एक लम्बी जाग में उसके सिरहाने मुस्तैद था.…

नाना जी की मुस्कान पे लड़की का कॉपीराइट अब भी था।

5 comments:

  1. नींद की कहानी - सपनो वाले राजकुमार की कहानी की तरह.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-07-2015) को "दुश्मनी को भूल कर रिश्ते बनाना सीखिए" (चर्चा अंक- 2028) (चर्चा अंक- 2028) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संडे स्पेशल भेल के साथ बुलेटिन फ्री , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. क्या करे जमाना कॉपीराइट का नहीं रहा ...बहुत बढ़िया

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  5. ये नींद का उड जाना और लब पर मुस्कुराहटआना।

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