Saturday, July 4, 2015

तुम्हारी मनमर्जियां मेरी अमानत हैं...


मेरे पल्लू के कोने में
नहीं बंधी है कोई नसीहत
तुझे देने को मेरी लाडो

विरासत में मिली
संस्कारों और रीति रिवाजों वाली भारी भरकम ओढनी को
मैंने संदूक में संभालकर नहीं रखा था
उसे तार-तार करके फेंक आई थी
बहत दूर
कि उसके बोझ से मुझे ही नहीं
समूची धरती को मुक्ति चाहिए थी

कोई हिदायत नहीं मेरी मुठ्ठियों में
तुम्हारे लिए
न नियम कोई , न ताकीद
कि अपने नियम तुम खुद बनाओ
कोई रास्ता नहीं बताऊँगी मैं तुम्हें
कि इस पर चलो और इस पर न चलो
अपना सही और गलत खुद तुम तय करो

मजबूती से करो प्रतिवाद
अपने से बड़ों से भी
कि उम्र में बड़ा होना
नहीं होता बड़ा होना

तुम्हारे गिरने पर संभाल लूंगी दौड़ के
ऐसा कोई वादा नहीं है मेरे पास
तुम्हारे लिए
लपक कर तुम्हें चूम लेने की
अपने सीने में समेट लेने की
पलकों में छुपा लेने की हसरत को
भींच लिया है मैंने अपने ही भीतर
सहना, हरगिज नहीं
जरा भी नहीं
जिंदगी सहने का नहीं
जीने का नाम है
घूरकर देखना इस तरह कि
हिमाक़त करने वाले
सोचने से भी बाज़ आये हिमाकतों के बारे में

शर्म, संकोच, विनम्रता, मधुरता ये शब्द हैं मात्र
इन्हें सिर्फ विवेक से हांकना मेरे लाडो
कि विनम्रता कोई संजीवनी बूटी भी नहीं
मत फ़िक्र करना किसी के कहने सुनने की
कि तुम्हारी मनमर्जियां मेरी अमानत हैं

जानती हूँ दिल तोड़ना हम स्त्रियों को नहीं आता
पर अपना दिल टूटने से बचाना भी होगा

तुम्हारी माँ के पास कुछ भी नहीं
तुम्हें देने को
सिवाय इसके कि
वो तुम्हारे क़दमों की ताक़त है
तुम्हारे पंखों की जुम्बिश
तुम्हारे खुद पर किये गए यकीन का ऐतमाद
तुम्हारे प्रतिवाद का स्वर की खनक
कभी कुछ भी गलत न सहने की हिम्मत
नाइंसाफ़ियों के मुंह पर तुम्हारा जड़ा हुआ तमाचा
तुम्हारी तमाम आवारगी में तुम्हारा साया
खिलखिलाहटों पे नज़र का काला टीका...

6 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०४ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "दिल की बात शब्दों के साथ" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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  2. बहुत खूबसूरत रचना

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  3. ये ताकत भी तो एक माँ की ही दी हुयी होती है ...
    और क्या चाहिए इसके बाद ...

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  4. तुम्हारी माँ के पास कुछ भी नहीं
    तुम्हें देने को
    सिवाय इसके कि
    वो तुम्हारे क़दमों की ताक़त है
    तुम्हारे पंखों की जुम्बिश
    तुम्हारे खुद पर किये गए यकीन का ऐतमाद
    तुम्हारे प्रतिवाद का स्वर की खनक.....बहुत ही उम्‍दा लि‍खा। वैसे भी आजकल की बेटि‍यों को ऐसी मां नसीब हो तो कुछ देने की जरूरत भी नहीं।

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  5. सुंदर ,लाजवाब कविता |

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  6. लाजवाब, मजा आ गया , लंबे समय बाद इतनी शानदार कविता पढ़ने को मिली

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