Sunday, January 12, 2014

आईना आँख चुराता क्यों है?



जबसे पहनी है अपने होने की महक
आईना आँख चुराता क्यों है?

तेरे आने और तेरे जाने का
फर्क मिटता सा नज़र आता क्यों है?

कोई आहट नहीं कहीं फिर भी
दिल इस तरह मुस्कुराता क्यों है

जिस तरह टूटा किये हैं ख्वाब मिरे
फिर नया ख्वाब चला आता क्यों है....


7 comments:

  1. सुन्दर !
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
    नई पोस्ट लघु कथा

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,लोहड़ी कि हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/01/blog-post_13.html

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  4. इसे कहते हैं प्यार, प्रेम, मुहब्बत, लव और जाने क्या क्या।
    बहुत कोमल प्रस्तुति।

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  5. ख़्वाबों की अपनी मनमानी,
    आते जाते रहते हैं

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