सुन्दर रचना
kya bat kahi hai
गहरा सच, काश लोग समझें।
True :)
सही है जहाँ 'मैं' है वहां प्रेम कहाँ … सुन्दर रचना के लिए बधाई..
'मैं' तो एक किनारा है प्रेम का - दोनों किनारों को मिलाता है और जो जुड़ गया - वह 'मैं' नहीं होता
सुन्दर रचना
ReplyDeletekya bat kahi hai
ReplyDeleteगहरा सच, काश लोग समझें।
ReplyDeleteTrue :)
ReplyDeleteसही है जहाँ 'मैं' है वहां प्रेम कहाँ … सुन्दर रचना के लिए बधाई..
ReplyDelete'मैं' तो एक किनारा है प्रेम का - दोनों किनारों को मिलाता है और जो जुड़ गया - वह 'मैं' नहीं होता
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