Thursday, May 9, 2013

बिखरने का सौन्दर्य


मुस्कुराने लगते हैं कॉफ़ी के मग
दीवारों पर उगने लगती हैं धडकने
दरवाजे जानते हैं दिल का सब हाल
खिडकियों बतियाती ही रहती हैं घंटों

खाली सोफों पर खेलते हैं यादों के टुकड़े
दीवार पर लगे कैलेण्डर को लग जाते हैं पंख
झुकती ही चली आती हैं अमलताश की डालियाँ
घर के जालों को मिलने लगता है प्यारा सा आकार
जिन्दगी से होने लगता है प्यार।

कलाई घडी मुड़-मुड़ के देखती है बीते वक़्त को
रेशमी परदे कनखियों से झांकते हैं खिड़की के उस पार
अचानक गिरता है कोई बर्तन रसोई में
भंग करता है भीतर तक के सन्नाटे को
फर्श पर बिखरता है एक राग,

सारी आकुलता को बाँहों में भर लेता है
अपना कमरा
उलझी अलमारियों में ढूंढते हुए कोई सामान
मिल जाता है कुछ जो खोया हुआ था कबसे
पलकें झपकाते हुए बिना कहे गए शुक्रिया
का प्रतिउत्तर देती है अलमारी

कुर्सी का कोई सिरा चुपके से थाम लेता है
आँचल का एक सिरा
और ठहर जाता है वक़्त का कोई लम्हा
फर्श पर बिखरी हुई किताबों में उगती हैं शिकायतें
पूरे घर में बिखरा हुआ अख़बार कहता है
देखो, इसे कहते हैं बिखरने का सौन्दर्य

दरवाजे पर टंगी घंटियाँ अचानक बज उठती हैं
कहती हैं कि ये कॉलबेल किसी और के नहीं
खुद अपने करीब आने की है आहट है।

सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...

11 comments:

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  2. सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
    जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं.........बहुत भाविक।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. जब तक अहसास ना हो , सजीव चीजें या लोग भी क्या मायने रखते हैं . एहसास ही निर्जीव की उपस्थिति भी दर्ज करते हैं !
    बहुत खूब !

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  5. सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
    जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...
    वाह

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  6. सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
    जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...

    ऐसा ही होता है....
    सब जीवंत हो उठते हैं यक ब यक......!!

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  7. सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
    जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...

    ...वाह! बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  8. जब सब वस्तुएँ अपनेपन के साथ हमेशा के लिए साथ जुड़ जाती हैं तो ...उसके लिए अपने भाव भी सोचने को मजबूर कर देते हैं ....

    निशब्द करती रचना ...बहुत खूब

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  9. जब चीजों से भाव जुड़ने लगते हैं तो निर्जीव में भी गति आ जाती है। सुन्दर प्रभावी रचना।

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  10. bht hi utkristta se bikhrne k saundraya ko darsaya gya h

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  11. लाजवाब, भावुक और सुन्दर अभिव्यक्ति | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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