दीवारों पर उगने लगती हैं धडकने
दरवाजे जानते हैं दिल का सब हाल
खिडकियों बतियाती ही रहती हैं घंटों
खाली सोफों पर खेलते हैं यादों के टुकड़े
दीवार पर लगे कैलेण्डर को लग जाते हैं पंख
झुकती ही चली आती हैं अमलताश की डालियाँ
घर के जालों को मिलने लगता है प्यारा सा आकार
जिन्दगी से होने लगता है प्यार।
कलाई घडी मुड़-मुड़ के देखती है बीते वक़्त को
रेशमी परदे कनखियों से झांकते हैं खिड़की के उस पार
अचानक गिरता है कोई बर्तन रसोई में
भंग करता है भीतर तक के सन्नाटे को
फर्श पर बिखरता है एक राग,
सारी आकुलता को बाँहों में भर लेता है
अपना कमरा
उलझी अलमारियों में ढूंढते हुए कोई सामान
मिल जाता है कुछ जो खोया हुआ था कबसे
पलकें झपकाते हुए बिना कहे गए शुक्रिया
का प्रतिउत्तर देती है अलमारी
कुर्सी का कोई सिरा चुपके से थाम लेता है
आँचल का एक सिरा
और ठहर जाता है वक़्त का कोई लम्हा
फर्श पर बिखरी हुई किताबों में उगती हैं शिकायतें
पूरे घर में बिखरा हुआ अख़बार कहता है
देखो, इसे कहते हैं बिखरने का सौन्दर्य
दरवाजे पर टंगी घंटियाँ अचानक बज उठती हैं
कहती हैं कि ये कॉलबेल किसी और के नहीं
खुद अपने करीब आने की है आहट है।
सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
जब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...
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ReplyDeleteसचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
ReplyDeleteजब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं.........बहुत भाविक।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जब तक अहसास ना हो , सजीव चीजें या लोग भी क्या मायने रखते हैं . एहसास ही निर्जीव की उपस्थिति भी दर्ज करते हैं !
ReplyDeleteबहुत खूब !
सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
ReplyDeleteजब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...
वाह
सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
ReplyDeleteजब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...
ऐसा ही होता है....
सब जीवंत हो उठते हैं यक ब यक......!!
सचमुच, चीज़ें तब चीज़ें नहीं रह जातीं
ReplyDeleteजब हम उनसे लाड़ लगा बैठते हैं...
...वाह! बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
जब सब वस्तुएँ अपनेपन के साथ हमेशा के लिए साथ जुड़ जाती हैं तो ...उसके लिए अपने भाव भी सोचने को मजबूर कर देते हैं ....
ReplyDeleteनिशब्द करती रचना ...बहुत खूब
जब चीजों से भाव जुड़ने लगते हैं तो निर्जीव में भी गति आ जाती है। सुन्दर प्रभावी रचना।
ReplyDeletebht hi utkristta se bikhrne k saundraya ko darsaya gya h
ReplyDeleteलाजवाब, भावुक और सुन्दर अभिव्यक्ति | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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