Thursday, February 7, 2013

रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है...


तुमने रोना भी नहीं सीखा ठीक से
ऐसे उदास होकर भी कोई रोता है क्या

यूँ बूँद-बूँद आँखों से बरसना भी
कोई रोना है
तुम इसे दुःख कहते हो
न, ये दुःख नहीं
रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है
लगातार खुरचना पड़ता है
सबसे नाजुक घावों को
मुस्कुराहटों में घोलना पड़ता है
आंसुओं का नमक

रोने के लिए आंसू बहाना काफी नहीं
आप चाहें तो प्रकृति से सांठ-गांठ कर सकते है
बादलों को दे सकते हैं उदासिया
फूलों की जड़ों में छुपा सकते हैं अवसाद
कि वो खिलकर इजाफा ही करें दुनिया के सौन्दर्य में
धरती के सीने से लिपटकर साझा कर सकते हैं
अपने भीतर की नमी
या आप चाहें तो समंदर की लहरों से झगडा भी कर सकते हैं
निराशा के बीहड़ जंगल में कहीं रोप सकते हैं
उम्मीद का एक पौधा

रोना वो नहीं जो आँख से टपक जाता है
रोना वो है जो सांस-सांस जज्ब होता है
अरे दोस्त, रोने की वजहों पर मत जाओ
तरीके पर जाओ
सीखो रोना इस तरह कि
दुनिया खुशहाल हो जाये
और आप मुस्कुराएँ अपने रोने पर...

(अनंत गंगोला जी के लिए)

10 comments:

  1. विलाप का विकल्‍प

    उम्‍मीद का संकल्‍प

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  2. हृदय के गहन उद्गार ....
    सुंदर प्रस्तुति ...

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  3. आत्मा को निचोड़कर रोयेंगे तो तन मन दोनों हल्का हो जायगा,फिर आप जरुर हँसेंगे -भाव अच्छा है
    Latest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )

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  4. जब हृदय सिकुड़ता है तो आँसू बहते हैं..

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  5. क्या कहूं प्रतिभा, मन को छू गई। बात बेबात यूँ ही निकल जाने वाले अपने आँसुओं से शर्मिंदगी महसूस करने वाली मैं, तुमने इन आँसुओं को एक नया ही आयाम दे दिया, शुक्रिया।

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  6. ‘रोने की वजहों पर मत जाओ, तरीके पर जाओ’ बहुत खूब कहा है आपने। बधाई।

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  7. मर्मस्पर्शी ....सच में आंसू टपकना भर रोना नहीं है.....

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  8. लाजवाब वर्णन

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  9. दिल की गहराइयों से रोना आता है चाहे वह भगवान के लिए हो या मनुष्य के लिए

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