ऐसे उदास होकर भी कोई रोता है क्या
यूँ बूँद-बूँद आँखों से बरसना भी
कोई रोना है
तुम इसे दुःख कहते हो
न, ये दुःख नहीं
रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है
लगातार खुरचना पड़ता है
सबसे नाजुक घावों को
मुस्कुराहटों में घोलना पड़ता है
आंसुओं का नमक
रोने के लिए आंसू बहाना काफी नहीं
आप चाहें तो प्रकृति से सांठ-गांठ कर सकते है
बादलों को दे सकते हैं उदासिया
फूलों की जड़ों में छुपा सकते हैं अवसाद
कि वो खिलकर इजाफा ही करें दुनिया के सौन्दर्य में
धरती के सीने से लिपटकर साझा कर सकते हैं
अपने भीतर की नमी
या आप चाहें तो समंदर की लहरों से झगडा भी कर सकते हैं
निराशा के बीहड़ जंगल में कहीं रोप सकते हैं
उम्मीद का एक पौधा
रोना वो नहीं जो आँख से टपक जाता है
रोना वो है जो सांस-सांस जज्ब होता है
अरे दोस्त, रोने की वजहों पर मत जाओ
तरीके पर जाओ
सीखो रोना इस तरह कि
दुनिया खुशहाल हो जाये
और आप मुस्कुराएँ अपने रोने पर...
विलाप का विकल्प
ReplyDeleteउम्मीद का संकल्प
हृदय के गहन उद्गार ....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ...
आत्मा को निचोड़कर रोयेंगे तो तन मन दोनों हल्का हो जायगा,फिर आप जरुर हँसेंगे -भाव अच्छा है
ReplyDeleteLatest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )
जब हृदय सिकुड़ता है तो आँसू बहते हैं..
ReplyDeleteक्या कहूं प्रतिभा, मन को छू गई। बात बेबात यूँ ही निकल जाने वाले अपने आँसुओं से शर्मिंदगी महसूस करने वाली मैं, तुमने इन आँसुओं को एक नया ही आयाम दे दिया, शुक्रिया।
ReplyDelete‘रोने की वजहों पर मत जाओ, तरीके पर जाओ’ बहुत खूब कहा है आपने। बधाई।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ....सच में आंसू टपकना भर रोना नहीं है.....
ReplyDeleteबेहतरीन ....
ReplyDeleteलाजवाब वर्णन
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से रोना आता है चाहे वह भगवान के लिए हो या मनुष्य के लिए
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