किसी क्रान्ति में नहीं इतनी शान्ति
कि समा ले अपने सीने में
जमाने भर का अवसाद
मिटा दे शोषण की लंबी दास्तानों के
अंतिम नामोनिशां तक
किसी युद्ध में नहीं इतना वैभव
कि जीत के जश्न से
धो सके लहू के निशान
बच्चों, विधवाओं और बूढ़े मां-बाप
की आंखों में बो सके उम्मीदें
किसी आन्दोलन में
नहीं इतनी ताकत जो बदल दे
लोगों के जीने का ढंग
और सचमुच
वे छोड़ ही दें आरामपरस्ती
किसी गांधी, किसी बुद्ध के पास
नहीं कोई दर्शन
जो टकरा सके जीडीपी ग्रोथ से
और कर सके सामना
सरकारी तिलिस्म का
किसी शायरी में नहीं इतना कौल
कि सुनकर कोई शेर
सचमुच भूल ही जायें
बच्चे पेट की भूख
और नौजवान रोजगार की चाह
किसी अखबार में नहीं खबर
जो कॉलम की बंदरबाट और
डिस्प्ले की लड़ाई से आगे
भी रच सके अपना वितान
किसी प्रेम में नहीं इतनी ताब
कि दिल धड़कने से पहले
सुन सके महबूब के दिल की सदा
और उसके सीने में फूंक सके अहसास
कि मैं हूं...
किसी पीपल, किसी बरगद के नीचे
नहीं है कोई ज्ञान
कि उसका रिश्ता तो बस
भूख और रोटी का सा है
किसी कविता में नहीं इतनी छांव
कि सदियों से जलते जिस्मों
और छलनी पांवों पर
रख सके ठंडे फाहे
गला दे सारे $गम...
जानते हुए ऐसी बहुत सी बातें
खारिज करती हूं अपना पिछला जाना-बूझा सब
और टिकाती हूं उम्मीद के कांधों पर
अपनी उनींदी आंखें...
बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteउम्मीद सवेरा
ReplyDeleteअन्त में ठहरा
बेहद गहन और सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteग़ज़ब करती हो बे !
ReplyDeleteनिराश करती जा रही थी. इसे पढ़ते हुए मेरी शक्ल घुटनों तक लटकी आ रही थी कि तभी आख़िरी लाइंस आयीं और बस्स ! ठा ! :-)
चीयर्स.
सुनो, न कहा करो कि कोई महबूब दिल की धडकन नहीं सुन सकता...
किसी प्रेम में नहीं इतनी ताब
ReplyDeleteकि दिल धड़कने से पहले
सुन सके महबूब के दिल की सदा
और उसके सीने में फूंक सके अहसास
कि मैं हूं...
किसी-किसी में होगी ...मैंने तो जाना नहीं मैंने तो पाया नहीं
बहुत सुन्दर भाव !!!
ReplyDeleteबाहर कहाँ है आनन्द, वह तो अन्दर ही छिपा है, पूरा का पूरा।
ReplyDeleteकिसी कविता में नहीं इतनी छांव
ReplyDeleteकि सदियों से जलते जिस्मों
और छलनी पांवों पर
रख सके ठंडे फाहे
गला दे सारे $गम...
जानते हुए ऐसी बहुत सी बातें
खारिज करती हूं अपना पिछला जाना-बूझा सब
और टिकाती हूं उम्मीद के कांधों पर
अपनी उनींदी आंखें...!
सच में जब इस तरह की बातें जेहन में ज्यादा आने लगें तो सो जाना ही बेहतर है...लेकिन ऐसे में कमबख्त नींद भी तो नहीं आती...!
उम्मीद के कांधों पर उनींदी आंखें, बहुत खूब। दिल को छूने वाली रचना। बधाई
ReplyDeleteसब कुछ जानते हुए भी एक आस का बना होना , जीवन के लिए यही जरुरी भी है !
ReplyDeleteअतिसुन्दर !
किसी शायरी में नहीं इतना कौल
ReplyDeleteकि सुनकर कोई शेर
सचमुच भूल ही जायें
बच्चे पेट की भूख
और नौजवान रोजगार की चाह
सही आपने कहा की है आप की यह कविता बहुत ही अच्छी है