9 नवंबर
सूरज की हथेली पर मानो किसी ने बर्फ का ढेला रख दिया हो. ठंडी सी गर्माहट थी उसके आने में. हमारे यहां आने के मकसद को बस अंतिम अंजाम मिलना बाकी था. काम बेहतर हो जाए तो उस संतुष्टि के साथ महसूस करने की क्षमता बढ़ जाती है. नौ नवम्बर का दिन दस तारीख के कार्यक्रम की तैयारियों को अंजाम देने के लिए था. सारा दिन कालेज, यूनिवर्सिटी के चक्कर लगाने के बाद...हजरत बल और फिर...डल झील.
इतने दिन से हम डल झील के करीब थे लेकिन आज यहां जाना हुआ. सच ही है जो करीब होता है अक्सर उसी के पास हम सबसे देर में जा पाते हैं.
पानी से मुझे कितनी मोहब्बत है यह माधवी जानती है. नदी, पोखर, समंदर, झील देखते ही पहला ख्याल आता है कूद जाऊं? तैरना जानबूझकर नहीं सीखा। हाँ, पार जाना ज़रूर सीखा है. मेरे दोस्तों को अब पता है मेरा पागलपन सो पहले से हजार नसीहतें हाथ थामे थीं. कुछ पूरे समय हाथ थामे बैठी भी रहीं, कुछ फोन पे टिमटिमाती रहीं।मैंने झील के ठीक मध्य में कहवा पीने के बाद खुद को खुद से विलग किया. नजर की आखिरी हद तक पानी ही पानी और चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यां. रास्ता रोकती पहाडि़यां नहीं, रास्ता देती हुई. हमारा नाविक हमें बता रहा था कि कहां किस फिल्म की शूटिंग हुई, कहां की क्या खासियत है. समूची डल किसी दुल्हन सी सजी थी. झील के बीच में कोई नाव आपकी नाव के करीब आ लगेगी और आपको शापिंग कराने ले जायेगी. चाय भी पिला देगी. ये पानी में तैरता एक शहर है. बाजार पानी में. खेत पानी में. जिंदगी में, पानी में. पांव रखने को जमीन तलाशने पर नाव ही मिलेगी...अरे हां, वही शिकारा...हाउसबोट कुछ भी कह लो यार. शापिंग में मेरी दिलचस्पी कभी रही ही नहीं लेकिन सामान बेचने वालों को गौर से देखती हूं. हमारा नाविक डल झील की खासियत बता रहा था...दूर कहीं सूरज झील के भीतर उतरने को बेताब था.
इतने दिन से हम डल झील के करीब थे लेकिन आज यहां जाना हुआ. सच ही है जो करीब होता है अक्सर उसी के पास हम सबसे देर में जा पाते हैं.
पानी से मुझे कितनी मोहब्बत है यह माधवी जानती है. नदी, पोखर, समंदर, झील देखते ही पहला ख्याल आता है कूद जाऊं? तैरना जानबूझकर नहीं सीखा। हाँ, पार जाना ज़रूर सीखा है. मेरे दोस्तों को अब पता है मेरा पागलपन सो पहले से हजार नसीहतें हाथ थामे थीं. कुछ पूरे समय हाथ थामे बैठी भी रहीं, कुछ फोन पे टिमटिमाती रहीं।मैंने झील के ठीक मध्य में कहवा पीने के बाद खुद को खुद से विलग किया. नजर की आखिरी हद तक पानी ही पानी और चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यां. रास्ता रोकती पहाडि़यां नहीं, रास्ता देती हुई. हमारा नाविक हमें बता रहा था कि कहां किस फिल्म की शूटिंग हुई, कहां की क्या खासियत है. समूची डल किसी दुल्हन सी सजी थी. झील के बीच में कोई नाव आपकी नाव के करीब आ लगेगी और आपको शापिंग कराने ले जायेगी. चाय भी पिला देगी. ये पानी में तैरता एक शहर है. बाजार पानी में. खेत पानी में. जिंदगी में, पानी में. पांव रखने को जमीन तलाशने पर नाव ही मिलेगी...अरे हां, वही शिकारा...हाउसबोट कुछ भी कह लो यार. शापिंग में मेरी दिलचस्पी कभी रही ही नहीं लेकिन सामान बेचने वालों को गौर से देखती हूं. हमारा नाविक डल झील की खासियत बता रहा था...दूर कहीं सूरज झील के भीतर उतरने को बेताब था.
ऐसी खूबसूरतें शामें जिंदगी में कम ही आती हैं. ये लम्हे चुपके से स्मतियों में दर्ज होते जा रहे थे. कैमरे की क्लिक में समेटते हुए झील के पानी को छूने का जी चाहा...'इसकी गहराई कितनी होगी?' अनायास पूछ बैठी थी. 'तुम्हारे मन से कम...' किसी ने हंस के कहा...तो फिर डूबने से क्या फायदा...डूबना कैंसिल...हम सब हंस दिये.
दो-ढाई घंटे का वो सफर कहने को बीत चुका था लेकिन सच तो यह है कि बीतता कुछ भी नहीं.
लैया चना खाते हुए झील को आंख भर देखना जैसे महबूब को जी भर के देखना...
लैया चना खाते हुए झील को आंख भर देखना जैसे महबूब को जी भर के देखना...
जलराशि सदा ही लुभाती है।
ReplyDeletesundar safar suhani yad..
ReplyDeleteअनायास पूछ बैठी थी. 'तुम्हारे मन से कम...' किसी ने हंस के कहा...तो फिर डूबने से क्या फायदा...डूबना कैंसिल...हम सब हंस दिये.
ReplyDeleteबहुत रोचक .... दृश्य जैसे आँखों में उतर आया ।
आपके यात्रा अनुभव लुभावने हैं।
ReplyDeleteयादे ताजा हो गई...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति