हम तो चलते हैं लो ख़ुदा हाफ़िज़
बुतकदे के बुतों ख़ुदा हाफ़िज़
कर चुके तुम नसीहतें हम को
जाओ बस नासेहो ख़ुदा हाफ़िज़
आज कुछ और तरह पर उन की
सुनते हैं गुफ़्तगू ख़ुदा हाफ़िज़
बर यही है हमेशा ज़ख़्म पे ज़ख़्म
दिल का चाराग़रों ख़ुदा हाफ़िज़
आज है कुछ ज़ियादा बेताबी
दिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़
क्यों हिफ़ाज़त हम और की ढूँढें
हर नफ़स जब कि है ख़ुदा हाफ़िज़
चाहे रुख़्सत हो राह-ए-इश्क़ में अक़्ल
ऐ "ज़फ़र" जाने दो ख़ुदा हाफ़िज़
ऐ "ज़फ़र" जाने दो ख़ुदा हाफ़िज़
बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल पढ़वाई आपने... शुक्रिया
ReplyDeleteआज है कुछ ज़ियादा बेताबी
ReplyDeleteदिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़
सुन्दर गजल प्रस्तुति...
बहुत बढ़िया गजल...
ReplyDeleteBahadur shah ki gazlen utni paini nahin thi..par ant samay tak ume ek ajeeb dhaar aati gayi..sajha karne ke liye shukriya
ReplyDeleteसुन्दर कलाम पढवाने हेतु सादर आभार.
ReplyDeletebahut bahut bahut badhiya..abhar
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शब्दों के आगाज़ के साथ ...अंत भी बेजोड हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल पढवाने हेतु हार्दिक आभार प्रतिभा जी
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल पढवाने के लिये आभार...
ReplyDeleteअच्छी गजल है |
ReplyDeleteआज है कुछ ज़ियादा बेताबी
ReplyDeleteदिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़
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कहते हैं जहर जहर को ही मारता है ...इतनी बेताबी न होती तो आपकी दुनिया में आने का होश ही कहाँ होता !