Friday, March 2, 2012

सुनो, मैं तुम तक पहुंचना चाहती हूँ...


सुनो, मैं तुम तक पहुंचना चाहती हूँ
तुम्हारे तसव्वुर को हथेली पर लेकर
हर रात निकल पड़ता है मेरा मन
दहलीज के उस पार....
मैं तुम्हारे शहर की हवाओं में
घुल जाना चाहती हूँ,
तुम्हारे कंधे पर गिरने वाली ओस
बनना चाहती हूँ
जिन रास्तों पर भागते फिरते हो तुम
मैं उन रास्तों के सीने में समा जाना चाहती हूँ.

सुनो, मै बारिश होना चाहती हूँ
तुम्हारे घर से  निकलते ही
तुम पर बरस पड़ने को बेताब
जानती हूँ तुम्हें आदत नहीं है
रेनकोट रखने की...

मैं धूप बनना चाहती हूँ कि
अपने भीगे हुए मन को सुखाने
तुम मेरे ही सानिध्य को तलाशो
और मैं छाया बनना चाहती हूँ
कि तेज़ धूप से तंग आकर
तुम मेरी तलाश में दौड़ पड़ो...

सुनो, मै धड़कन बनना चाहती हूँ
तुम्हारे सीने में बस जाना चाहती हूँ
हमेशा के लिए
कि ये देह छूटे भी तो मैं
जिन्दा ही रहूँ...

सुनो, मैं तुम्हारी आवाज होना चाहती हूँ
कि जब मौसम आलाप ले रहा हो
मैं तुम्हारे कंठ से सुर बनकर छलक उठूं,
इन्द्रधनुष होना चाहती हूँ
कि हमेशा पहनो तुम मेरा ही कोई रंग

मैं चाँद होना चाहती हूँ
कि तुम्हारे साथ रहूँ हमेशा
सितारे होना चाहती हूँ
कि तुम्हारा व्यक्तित्व
झिलमिलाता रहे हरदम...

नदी होना चाहती हूँ कि
तुम्हारी प्यास मेरे ही किनारों पर बुझे,
पहाड़ होना चाहती हूँ कि
तुम्हारे भीतर मेरे होने का अर्थ हो
तुम्हारा विराट व्यक्तित्व

नहीं, मैं दीवारों में कैद नहीं होना चाहती
मत, रोकना मेरी ख्वाहिशों के विस्तार को
मै तुम्हें लेकर आसमान में उड़ना चाहती हूँ
मै कुछ भी नहीं चाहती तुम्हारे बिना
'तुम' आखिर 'मैं' ही तो हो...

29 comments:

  1. this is beautiful and adorable poem, really.

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  2. वाह..! क्या क्या बनकर खुद को ही पाना चाहती हैं..!
    kalamdaan.blogspot.in

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  3. यह अनन्यता का भाव ही प्रेम का आधार है.. एक पंक्ति पर ध्यान दिलाना चाहूंगी -
    कि तुम्हारा व्यक्तित्व हमेशा
    झिलमिलाता रहे हरदम... यहां पर लगातार दो पंक्तियों में हमेशा और हरदम का प्रयोग खटक रहा है। अन्यथा सुंदर कविता।

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  4. शुक्रिया दीपिका! दुरुस्त कर दिया है...

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  5. सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.

    आपका मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर स्वागत है.

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  6. bahut behtreen ..khud ko paana us mein kho kar ..bahut khub

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  7. होने के इतने सारे विकल्प हैं आपके पास तो... एक से एक बढ़कर
    कुछ भी हो जाएंगे आप, मैं जानता हूँ भली भांति कि आप कुछ भी हो सकते हैं
    शायद ऐसा 'मैं' और 'तुम' के खतम होने के बाद होता होगा ....

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  8. मै कुछ भी नहीं चाहती तुम्हारे बिना
    'तुम' आखिर 'मैं' ही तो हो...बस यही भाव तो प्रेम को सार्थकता प्रदान करता है।

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  9. Wah, Kya na banna chaha pane ke liye.pane ki pyas aur tadap ko batati ek bahut hi khoobsurat kavita

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  10. वाह बेहद खूबसूरत परिभाषा ..इस दिल के ज़ज्बातो की

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  11. वाह ...बहुत खूब

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  12. जियो बेटा !
    इस कविता के लिए तो तुम ईनाम की हक़दार हो ! क्या भेजें ? बता दो ?
    सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर भाव...
    ऐसा लगता है प्रतिभा प्याले में भरी हुयी छलक रही है..

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  13. बहुत सुन्दर लिखा है...आखिरी पंक्ति में सारा का सारा दर्शन सिमट आया है

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  14. नहीं, मैं दीवारों में कैद नहीं होना चाहती
    मत, रोकना मेरी ख्वाहिशों के विस्तार को
    मै तुम्हें लेकर आसमान में उड़ना चाहती हूँ
    मै कुछ भी नहीं चाहती तुम्हारे बिना
    'तुम' आखिर 'मैं' ही तो हो...
    बहुत ही अच्छी कविता |होली की रंग बिरंगी शुभकामनायें |

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  15. कितना कठिन होता किसी को समझ पाना..

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  16. क्या बात है प्रतिभा जी
    पहाड़ होना चाहती हूं
    कि तुम्हारे भीतर मेरे होने का अर्थ हो
    तुम्हारा विराट व्यक्तित्व ।
    सचमुच एक बेहतरीन रचना ।

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  17. मत, रोकना मेरी ख्वाहिशों के विस्तार को
    मै तुम्हें लेकर आसमान में उड़ना चाहती हूँ
    मै कुछ भी नहीं चाहती तुम्हारे बिना
    तुम और मैं का संगम, प्रेम की चरम सीमा... नदी का सागर से मिलन... बहुत सुंदर भाव

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  18. एक से बढ़ कर एक option हैं.....
    दो चार तो मैंने भी select कर लिए हैं अपने लिए...
    कुछ भी हुई तो निर्वाण पक्का....!
    प्रतिभाजी....
    यथा नाम...
    तथा गुण....!!

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  19. प्रतिभा जी, में खुद रहकर ही कैद से निकलना चाहती हूँ..कुछ और नहीं खुद ही होना चाहती हूँ

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  20. संध्या जी, हम सब वही होना चाहते हैं यानि खुद...जरिया कौन बनता है खुद तक पहुँचने का ये और बात है...

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  21. Bahut sundar ! I am short of words to praise these beautiful verses.

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  22. आज आपकी यह सुंदर भावमयी पोस्ट पढ़कर एक गीत याद आ गया "ख्वाबों से निकाल के तू आजा हवाओं पे चल के तू आजा मेरी ख्वाइशें हज़ार मुझे तुझ से है प्यार,...बहुत ही सुंदर सर्जन बधाई...

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  23. दिल से निकली हुई कविता , शब्दो की सीमाओ को तोडती हुई

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  24. man ke bhavo aur tammna ko khubsurti se aawaj di hai aapne

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  25. वाह कविताजी ....एक दूसरे में लीन हो जाने की पराकाष्ठा....... काश ऐसा हो पाता.. बहुत सुन्दर ख्याल !!!!!

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  26. कोमल अहसास युक्त बहुत ही सुन्दर भावमयी रचना..

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