Sunday, November 6, 2011

जीने का सलीका है प्रतिरोध


संकल्प के साथी भोजपुरी गीतों की खुशबू के साथ 
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार...नरेश सक्सेना 
अनुपमा श्रीनिवासन  
उमा चक्रवर्ती 
रमाशंकर विद्रोही 
नदियों के हमराही अपल 
मैं उन्हें नहीं जानती थी. कभी नाम भी नहीं सुना था. उमा, उमा चक्रवर्ती. संजय जोशी उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे. उनकी ऊर्जा, उनका स्पष्ट दृष्टिकोण और समाज की नब्ज पर उनकी पकड़. सत्तर बरस की उम्र में पहली डाक्यूमेंट्री बनाने वाली उमा चक्रवर्ती की फिल्म मेरे सामने खुल रही थी. एक-एक दृश्य ऐसे सामने से गुजर रहा था जैसे सर पर कई मटके एक के ऊपर एक रखकर चलती कोई नवयौवना. मटकों का होना उसकी चाल में सौंदर्य और संतुलन की जो रिद्म पैदा करता है वह अप्रतिम होता है. वही सुख था उनकी फिल्म 'अ क्वाइट लिटिल कंट्री' का. नॉस्टैल्जिया का ऐसा पिक्चराइजेशन. एक बक्से में बंद एक स्त्री. उसका मन. कुछ कागज, कुछ स्मृतियां...दिल चाहा उस उर्जावान स्त्री को एक बार बस छू लूं कि उनकी ताकत का कुछ अंश मिल जाए शायद. फिल्म खत्म होते ही लोग उन्हें घेर लेते हैं. मैं पीछे खड़ी उनके खाली होने का इंतजार करती हूं. अचानक भीड़ हमें एक-दूसरे के सामने खड़ा करती है और मैं बेसाख्ता कह उठती हूं, आपको छूना चाहती हूं एक बार. वो हंसकर गले लगा लेती हैं. भींच लेती हैं अपनी बाहों में. मैं देख रही थी तुम्हें देखते हुए...उन्हें गालों को प्यार से थपथपाया. मैंने मानो सचमुच उनकी ऊर्जा को सोख लिया था. 
लखनऊ में हुए जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित चौथा फिल्म फेस्टिवल अपने सफर के 20वें पड़ाव पर था. यहां ऐसी न जाने कितनी अनुभूतियां बिखरी पड़ी थीं. तीन दिन चलने वाले इस फेस्टिवल की थीम थी फिल्म के जरिये स्त्रियों का संघर्ष. फिल्म फेस्टिवल के इस आयोजन में शिरकत करते हुए एक शब्द लगातार जेहन में कुलबुलाता रहा, रजिस्टेंस...प्रतिरोध. 
लगभग सभी फिल्मकारों ने, जनकवि रमाशंकर विद्रोही ने, भोजपुरी गीतों के साथ बलिया से आई संकल्प टीम के साथियों ने, गंगा, गोमती, ब्रहमपुत्र और जाम्बेजी नदियों की सिरे से अंत तक यात्रा करने वाले फिल्मकार और यायावर अपल में आखिर क्या ऐसा था जो उन्हें आम होते हुए भी खास बना रहा था. जीवन के प्रति नजरिया. गलत के प्रति प्रतिरोध की ताकत. ऋत्विक दा की फिल्म 'मेघे ढाका तारा' की नायिका जब यह कहती है कि उसने गलत का प्रतिरोध न करके पाप किया है तो तस्वीर साफ नजर आती है. पूरी फिल्म में उसकी खामोशी में छुपे दर्द का कारण स्पष्ट नजर आता है. अंत में वो 'मेघे ढाका तारा' होने की बजाय सूरज बनना चाहती है. यही उसके प्रतिरोध का स्वर है. 
अनुपमा श्रीनिवासन अपनी फिल्म 'आई वंडर' में सिर्फ बच्चों से बात करती हैं कि आखिर उन्हें पढऩा लगता कैसा है? वो जो पढ़ रहे हैं, उसे समझ भी रहे हैं क्या? चंद सीधे से सवालों के जरिये वे बिना किसी बैनर पोस्टर या आंदोलन के फिल्म देखने वाले के भीतर प्रतिरोध को भरती हैं कि ऐसी शिक्षा किस काम की जिसमें बच्चों का मन न लगे, पढ़ाये गये पाठ उन्हें समझ में न आयें...वे सचमुच ऐसा कुछ नहीं कहतीं लेकिन यह साफ सुनाई देता है. वसुधा जोशी की फिल्म फार माया चार पीढ़ी की महिलाओं के सामाजिक व पारिवारिक परिवेश का आंकलन करती है.
'ससुराल' मीरा नायर- देखते हुए मन चीत्कार कर उठता है कहां है रजिस्टेंस. क्यों बचपन से स्त्री के मन में प्रतिरोध को दबाना ही सिखाया जाता है. सहना उसके जीवन का गहना क्यों बन जाता है. लड़की एकदम गऊ है...क्या अर्थ है कि जिस खूंटे से बांध दो बंध जायेगी. जिस घर डोली जायेगी वहां से अर्थी निकलेगी...की कहावतें कब तक लड़कियों को सुननी पड़ेंगी. इन्हीं बातों के भीतर प्रतिरोध की आवाज है. जिसे हर स्त्री को सुनना होगा. पायल की जगह प्रतिरोध की आवाज को बांधना होगा. प्रतिरोध न करने के उस पाप से बचना होगा, जिसे नीता ने किया और जीवन भर कष्ट सहा. 
जहां भी, जब भी, जैसा भी गलत घट रहा है उसके प्रति अपने भीतर मुखर होते विरोध के बीजों को सींचना होगा. प्रतिरोध के खतरों का सामना करते हुए आगे बढऩा होगा. जफर पनाही की ईरानी फिल्म 'ऑफ साइड' में प्रतिरोध का यह स्वर किसी फूल का खिलता नजर आता है. यही सुर था इस फिल्मोत्सव का. 21 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक चले इस तीन दिवसीय समारोह का उद्घाटन नरेश सक्सेना जी ने अपने माउथ ऑर्गन से 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार...' बजाते हुए किया और कवि रमाशंकर विद्रोही ने समाज को यह चेतावनी देते हुए कि अब वे किसी लड़की को जलने नहीं देंगे इसे विराम दिया. 
- प्रतिभा कटियार
(प्रकाशित) 

8 comments:

  1. लखनऊ में हुए जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित चौथा फिल्म फेस्टिवल के बारे में बढिया जानकारी मिली .. गलत बातों का प्रतिरोध तो होना ही चाहिए !!

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  2. ्बहुत बढिया रपट प्रस्तुत की है।

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  3. क्या बात है, बहुत शानदार रिपोर्ट

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  4. सब ठीक है, यह स्वीकार कर लेना तो विकास का अन्त हो गया।

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  5. बहुत अच्छी रिपोर्ट



    नीरज

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति !

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  7. चित्रों के साथ अच्छी रिपोर्ट आभार

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  8. Thanx a lot Pratibha ji for this wonderful report.

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