Monday, October 31, 2011

इंतजार...



नर्म मखमली घास पर नंगे पांव धीरे-धीरे चलते हुए उन्हें घंटों बीत चुके थे. उनमें कोई संवाद नहीं हो रहा था. न बोला, न अबोला. वे अपने-अपने एकांत में थे. एक साथ. वे एक-दूसरे के बारे में जरा भी नहीं सोच रहे थे. हालांकि इस मुलाकात से पहले हर पल वे एक-दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे. कई बार तो एक पल में कई बार तक. वे बेवजह मुस्कुराते थे. नाराज होते थे. हाथ में कोई भी काम हो, दिमाग कितने ही हिस्सों में बंटा हो वे एक-दूसरे के बारे में ही सोचा करते थे. इस मुलाकात का उन्हें बरसों से इंतजार था. मिलने के बाद भी वे चल ही रहे थे. साथ-साथ. अकेले-अकेले.
चांद उन पर चांदनी बरसा-बरसा कर थक चुका था. लेकिन उनके पैर तो मानो चलने के लिए अभिशापित थे, या कहें कि उन्हें वरदान मिला था चलने का. वे बस चलते जा रहे थे. उनके भीतर भी न जाने क्या-क्या चल रहा था. पर वे शांत थे. उद्विग्न नहीं. उनके मिलन में असीम शांति थी.
लड़का अचानक रुक गया. 'सुनो,' उसने कहा.
लड़की ने चलते-चलते ही जवाब दिया 'कहो,'
'तुम खुश हो ना?' लड़के ने पूछा. यह उनके बीच पहला संवाद था. लंबे इंतजार के बाद मुलाकात के कई घंटे बीत जाने के बाद का पहला संवाद.
लड़की ने अपनी बांहें आकाश की ओर फैलाते हुए जोर से चिल्लाकर कहा, 'बहुत..'.
लड़के ने चैन की सांस ली. वो जहां रुका था, वहीं बैठ गया. रात के अंधेरे में सफेद फूलों की चमक आसमान के तारों को मात कर रही थी. उनकी खुशबू उनके सर पर मंडरा रही थी. लड़की ने पलटकर देखा और आगे चलती गई. उसने दोबारा पलटकर नहीं देखा और आगे बढ़ती गई. उसके कदमों में अब लड़के के होने की आश्वस्ति थी. लड़के ने अपनी बाहों को मोड़कर तकिया बनाया और उसमें अपने सर को टिकाकर आसमान में टहलते चांद को देखने लगा. लड़की घास पर अपना सफर पूरा करके लौटी तो लड़के की बाहों के तकिये में अपना सर भी टिकाने की कोशिश करने लगी. लड़के ने अपनी बांह फैला दी.
उसकी बांह के तकिये पर सर टिकाते हुए लड़की ने उसकी कलाई को छुआ.
'कितनी चौड़ी कलाई है तुम्हारी...' उसने किसी बच्चे की तरह खुश होते हुए कहा.
लड़का चुप रहा.
उसने लड़के की हथेलियों में अपनी हथेली को समा जाने दिया. लड़के की लंबी उंगलियों और चौड़ी हथेली में उसकी हथेली कैसे समा गई, उसे पता ही न चला. उन एक दूसरे में समाई हथेलियों को देखते हुए लड़की ने कहा, 'आज समझ में आया कि हमारी उंगलियों के बीच खाली जगह क्यों होती है?'
लड़का जवाब जानता था फिर भी उसने पूछा 'क्यों?'
'ताकि कोई आये और उस खाली जगह को भर दे.'  दोनों मुस्कुरा दिये.
'थक गये होगे?' उसने लड़के से पूछा.
'क्यों?' लड़के को इस सवाल का सबब समझ नहीं आया.
'सदियों का सफर आसान तो न रहा होगा?' उसने मुस्कुराते हुए कहा.
'बहुत आसान था.' लड़के ने कहा. 'अगर पता हो कि कहीं कोई आपके इंतज़ार में है तो सफर की थकान जाती रहती है.'
'और अगर ये इंतजार का सफर जीवन के उस पार तक जाता हो तो?' लड़की ने पूछा.
'तो जीवन बहुत खूबसूरत हो जाता है यह सोचकर कि जिंदगी के उस पार भी कोई है जिसे आपका इंतजार है.' लड़के ने कहा.
'हम क्यों चाहते हैं कि कोई हमारा इंतजार करे?' लड़की ने मासूमियत से पूछा.
'असल में हम जब यह चाहते हैं कि कहीं कोई हमारा इंतजार करे तो असल में हम खुद किसी का इंतजार कर रहे होते हैं. उंगलियों के बीच की खाली जगह के भरे जाने का इंतजार.  इंतजार अनकहे को सुनने का और अब तक के सुने हुए को बिसरा देने का भी. एक-दूसरे के मन की धरती पर जी भरके बरसने का इंतजार और अपनी आंखों में बसे बादलों को मुक्त कर देने का इंतजार. जानती हो सारी सार्थकता इंतजार में है.'
'ओह...?' लड़की उसकी बात को ध्यान से सुन रही थी. लड़की ही नहीं प्रकृति का जर्रा-जर्रा लड़के की बात को ध्यान से सुन रहा था. रात भी अपने सफर को तय करते-करते ठहरकर सुनने लगी थी.
'फिर...?' सबने एक सुर में कहा. मानो कोई कहानी पूरी होने को है.
'इंतजार में होना प्रेम में होना है. प्रेम इंतजार के भीतर रहता है.' लड़के ने कहा.
'तो जिनका इंतजार पूरा हुआ उनके प्रेम का क्या?'  लड़की ने उंगलियों में उंगलियों को और कसते हुए पूछा. ऐसा करते वक्त उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी.
'जिनका इंतजार पूरा हुआ, उनके हिस्से का अगला इंतजार उन्हीं पूरे हुए पलों में कहीं जन्म ले रहा होता है.'
'यानी प्रेम हमेशा सफर में रहता है?' लड़की ने आगे जोड़ते हुए पूछा.
'हां, प्रेम एक नदी है, जो हमेशा बहती रहती है, और उसे समूची धरती की परिक्रमा करते हुए यह गुमान रहता है कि कहीं कोई समंदर है उसके इंतजार में. यही गुमान उस नदी का सौंदर्य है.'
कहते-कहते लड़का अचानक रुक गया.
'तुम्हें एक बात पता है?' लड़के के शब्दों का सुर अचानक धीमा पड़ गया था.
'क्या...' लड़की ने उसी बेपरवाही से पूछा.
'तुम बहुत सुंदर लग रही हो.'
'धत्त...' लड़की शरमा गई.
'पहली बार देखा है क्या?' उसने लड़के की बाहों में छुपते हुए कहा.
'हां, खुले बालों में पहली बार.'
लड़की ने अपने चेहरे को अपने लंबे बालों से ढंक लिया.
'तुम्हें पता है कितनी सदियों के इंतजार का सफर तय किया है मैंने.' लड़का अपनी बात को वापस ठिकाने पर ले आया.
लड़की ने कहा, 'हां, जानती हूं.'
'और तुम जानते हो कि तुम तक आने के लिए मुझे धरती की कितनी परिक्रमाएं करनी पड़ीं?'
'जानता हूं.' दोनों खिलखिला दिए.
रात ने अपने आंचल में उनकी खिलखिलाहटों के फूल समेट लिये. सदियों के इंतजार के विराम की यह अनूठी कथा उसके हिस्से में जो आई थी. सूरज आहिस्ता-आहिस्ता रात की ओर बढ़ रहा था. लड़की उसकी उंगलियों में अब तक उलझी हुई थी. लड़का दूर कहीं आसमान में निगाह टिकाये हुए था कि तभी पौ फटी. सूरज की पहली किरन ने धरती की तलाशी ली. धरती का वह कोना खूब महक रहा था. नर्म घास पर कुछ पैरों के निशान अब भी थे. लेकिन वहां और कोई नहीं था. हां, कुछ पंखों के फडफ़ड़ाने की आवाज जरूर सुनी थी उसने.

सुबह के हिस्से में फिर इंतजार आया था.

(प्रकाशित)

17 comments:

  1. awesommm ...pariyo ki kahani sa ehsaas dil ko mahkaata chala gya ..:)

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  2. वाह, बहुत सुंदर है ये इंतजार

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  3. Vandna ji, Mahendra ji shukriya aapka.

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  4. इंतज़ार की सार्थकता स्वतः सिद्ध है...
    इंतज़ार को अगर अनुभव न किया हो तो मिलने का सुख भी अधुरा सा होता है!
    भावों का सहज प्रवाह इस पोस्ट की विशेषता है!

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  5. प्रतीक्षा में संभावना है, संभावना में संशय, संशय में पीड़ा।

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  6. BAHUT HI BHAVPURN...TAMAM SAMETE HUI AHSAASON KO BIKHERA HAI AAPNE.....

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  7. बहुत सुन्दर कहानी.... चिरप्रतीक्षा की

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  8. तुम्हें पता है , नदी पृथ्वी की परिक्रमा लगाते हुए क्या सोचती रहती है ........ :-)
    और पता है तुम्हें वो समन्दर क्या सोचता रहता है ................. :-)
    :-) :-) :-) :-)
    इस कथा को जीते हुए बह रही है एक नदी,
    इस प्रेम का साक्षी बना हर पल झर रहा है पीला चाँद... और रात की चादर ने ढंका हुआ है उन दोनों को .............कि मुए ज़माने की नज़र न लगे !
    आ जा बेट्टा , CCD में ब्लैक कॉफ़ी पीने की इच्छा हो रही है...... :-) :-) :-) :-) (और फिर वहीं बैठे हुए इसे दोबारा पढ़ा जाए ! )
    सुन्दर कथा................................................................................................................................................................ !

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  9. 'इंतजार में होना प्रेम में होना है. प्रेम इंतजार के भीतर रहता है.'

    जान लो वह मिलन एकाकी विरह में है दुकेला....।

    प्रतीक्षा में संभावना है, संभावना में संशय, संशय में पीड़ा।

    इस कहानी की अद्भुत बात यह है कि भाव की सारी बातें पुरूष पात्र कह रहा है.....।
    काश, कि ऐसा कोई पुरूष इस धरती पर हो.....मैं उससे जरूर मिलना चाहूंगी....।

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  10. 'इंतजार में होना प्रेम में होना है. प्रेम इंतजार के भीतर रहता है.' लड़के ने कहा.
    'तो जिनका इंतजार पूरा हुआ उनके प्रेम का क्या?' लड़की ने उंगलियों में उंगलियों को और कसते हुए पूछा. ऐसा करते वक्त उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी.
    'जिनका इंतजार पूरा हुआ, उनके हिस्से का अगला इंतजार उन्हीं पूरे हुए पलों में कहीं जन्म ले रहा होता है.'
    'यानी प्रेम हमेशा सफर में रहता है?' लड़की ने आगे जोड़ते हुए पूछा.
    'हां, प्रेम एक नदी है, जो हमेशा बहती रहती है, और उसे समूची धरती की परिक्रमा करते हुए यह गुमान रहता है कि कहीं कोई समंदर है उसके इंतजार में. यही गुमान उस नदी का सौंदर्य है.'

    बहुत सुन्दर...भावमयी....दिल को छू कर दिल में घर करती ...

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  11. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति|

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  12. 'असल में हम जब यह चाहते हैं कि कहीं कोई हमारा इंतजार करे तो असल में हम खुद किसी का इंतजार कर रहे होते हैं.......

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  13. प्रेम और इतंजार एक दुसरे के पर्यायवाची, एक दुसरे को सार्थक करते... भीनी-भीनी सी यह पोस्ट भीतर तक महका देती है ...

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  14. 'और अगर ये इंतजार का सफर जीवन के उस पार तक जाता हो तो?' लड़की ने पूछा.
    'तो जीवन बहुत खूबसूरत हो जाता है यह सोचकर कि जिंदगी के उस पार भी कोई है जिसे आपका इंतजार है.' लड़के ने कहा.

    ......

    'तुम्हें पता है कितनी सदियों के इंतजार का सफर तय किया है मैंने.' लड़का अपनी बात को वापस ठिकाने पर ले आया.
    लड़की ने कहा, 'हां, जानती हूं.'
    'और तुम जानते हो कि तुम तक आने के लिए मुझे धरती की कितनी परिक्रमाएं करनी पड़ीं?'
    'जानता हूं.' दोनों खिलखिला दिए.

    ...
    प्रतिभा जी ... एक सफर मेरे अंदर भी जारी है ....और आपने मेरे इंतज़ार में और जान डाल दी है और जोश भर दिया है
    आप माते की मित्र है तो आशीर्वाद तो मैं हक से मांग सकता हूँ !

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  15. @ Aanand Dwivedi- meri duniya me aane ka shurkiya aandand ji...

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  16. उंगलियों के बीच की खाली जगह के भरे जाने का इंतजार...इंतजार अनकहे को सुनने का और अब तक के सुने हुए को बिसरा देने का भी....एक-दूसरे के मन की धरती पर जी भरके बरसने का इंतजार और अपनी आंखों में बसे बादलों को मुक्त कर देने का इंतजार........!!

    और फिर...
    इंतज़ार...इंतज़ार....इंतज़ार.....!! इंतज़ार एक ऐसा शब्द है जो कभी ख़त्म ही नहीं होता...!
    मिलकर भी और न मिल कर भी....
    बस इंतज़ार बना रहता है....
    शाश्वत!!

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