Thursday, September 22, 2011

आकाश में बोए हीरे मोती



 तुमने वर्षांत पर मुझे एक बाली दी धान की 

क्वांर में उजाली दी कांस की 
कातिक में झउया भर फूल हरसिंगार के 
अगहन में बंसी दी बांस की 
माघ में दिया मुझको अलसी का एक फूल 
फागुन में छटा दी पलाश की 
चैत में दिया मुझको नया जन्म 
नहर की मछलियाँ दीं मुझको वैशाख में 
जेठ में मुझे सौंपी प्रिय, तुमने बेकली 
छुआ, हरा किया मुझे, वर्षा के पाख में.

मैं लेकिन जल भर भर लाता हूँ आँख में 
क्या जाने मेरा मन कैसा हो आता है
क्या कुछ ढूँढा करता हूँ पीछे 
छूट गए वर्षों की राख में 
क्या जानूं क्यों पीछे और लौट जाता हूँ. 
मैं बारह मास में 
लगता है बोए थे मैंने जो हीरे-मोती इस आकाश में 
जीवन ने बिखरा दिया है सब, यहाँ-वहां घास में.

छूछापन सोया है मन के समीप, बहुत पास में
मैंने क्यों बोए थे हीरे-मोती इस आकाश में?

- श्रीकांत वर्मा  

4 comments:

  1. हीरे मोती प्रेम की उर्वराशक्ति क्षीण कर देते हैं।

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  2. गहन भावो का सुन्दर समावेश्।

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  3. जाने कितनी दूरी थी
    कि उम्र भर का सफर
    भी कम ही पड़ा,
    जाने कितनी नजदीकी थी
    कि हर पल में
    हजार बार मिले भी,
    इश्क की इबारत में
    ये उलटफेर भी
    कमाल होते हैं...
    बहुत अच्छी क्षणिका प्रतिभा जी ....
    आज अचानक आपके ब्लॉग pe आना हुआ तो इन क्षणिकाओं पे नज़र गई ...

    apni १०, १२ क्षणिकाएं दीजियेगा saraswati -suman patrikaa ke liye ....
    jo क्षणिका विशेषांक निकल रथ है ...
    साथ अपना संक्षिप्त परिचय और तस्वीर भी .....

    harkirathaqeer@gmail.com

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