तुमने वर्षांत पर मुझे एक बाली दी धान की
क्वांर में उजाली दी कांस की
कातिक में झउया भर फूल हरसिंगार के
अगहन में बंसी दी बांस की
माघ में दिया मुझको अलसी का एक फूल
फागुन में छटा दी पलाश की
चैत में दिया मुझको नया जन्म
नहर की मछलियाँ दीं मुझको वैशाख में
जेठ में मुझे सौंपी प्रिय, तुमने बेकली
छुआ, हरा किया मुझे, वर्षा के पाख में.
मैं लेकिन जल भर भर लाता हूँ आँख में
क्या जाने मेरा मन कैसा हो आता है
क्या कुछ ढूँढा करता हूँ पीछे
छूट गए वर्षों की राख में
क्या जानूं क्यों पीछे और लौट जाता हूँ.
मैं बारह मास में
लगता है बोए थे मैंने जो हीरे-मोती इस आकाश में
जीवन ने बिखरा दिया है सब, यहाँ-वहां घास में.
छूछापन सोया है मन के समीप, बहुत पास में
मैंने क्यों बोए थे हीरे-मोती इस आकाश में?
- श्रीकांत वर्मा
हीरे मोती प्रेम की उर्वराशक्ति क्षीण कर देते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteगहन भावो का सुन्दर समावेश्।
ReplyDeleteजाने कितनी दूरी थी
ReplyDeleteकि उम्र भर का सफर
भी कम ही पड़ा,
जाने कितनी नजदीकी थी
कि हर पल में
हजार बार मिले भी,
इश्क की इबारत में
ये उलटफेर भी
कमाल होते हैं...
बहुत अच्छी क्षणिका प्रतिभा जी ....
आज अचानक आपके ब्लॉग pe आना हुआ तो इन क्षणिकाओं पे नज़र गई ...
apni १०, १२ क्षणिकाएं दीजियेगा saraswati -suman patrikaa ke liye ....
jo क्षणिका विशेषांक निकल रथ है ...
साथ अपना संक्षिप्त परिचय और तस्वीर भी .....
harkirathaqeer@gmail.com