'ये लो तुम्हारी फेवरेट बटर स्कॉच...' लड़के ने आइसक्रीम का कोन लड़की की ओर बढ़ाया. दिन के बढ़े हुए टेम्परेचर को आइसक्रीम के मेल्ट होने की बेताबी से नापा जा सकता था. लड़की उसे देखकर मुस्कुरा रही थी.
खाओ भी. 'ऐसे देख क्या रही हो. मेल्ट हो जायेगी.' लड़के ने कहा.
लड़की मुस्कुराई. उसने आइसक्रीम का स्वाद जीभ पर आने दिया. मेल्ट होती आइसक्रीम में वो खुद को देख रही थी. वो खुद भी तो न जाने कब से मेल्ट हुई जा रही है. जाने ये किस मौसम का असर था.
न्यूज चैनल्स गला फाड़-फाड़कर 45 डिग्री टेंम्परेचर को 56 डिग्री तक पहुंचा चुके थे. एयरकंडीशंड कमरों के भीतर भी लोग मौसम की तल्खी को रेंगता हुआ महसूस कर रहे थे. आइसक्रीम का अंतिम टुकड़ा मुंह में डालते हुए लड़की ने कहा 'चलो एक ड्राइव लेकर आते हैं.'
'पागल हो गई हो. इतनी धूप में कोई ड्राइव लेता है क्या?'
'तुम चलो तो, मैं धूप को छांव बना दूंगी.' लड़की ने जोर देकर कहा. लड़के के पास कोई चारा नहीं था. उसने सूरज की ओर देखा और मन ही मन कहा, 'रहम..'.
लड़के ने ड्राइव करना शुरू किया. लू के थपेड़े दोनों पर किसी क्रूर जल्लाद के कोड़ों की तरह बरसने लगे. तभी लड़की ने अपने दोनों हाथ हवा में लहराये और गाना शुरू किया. 'बोले रे पपीहरा...पपीहरा...एक मन प्यासा, एक मन तरसे रे....बोले रे पपीहरा...' लड़की के सुर एकदम पक्के थे. सड़कें एकदम सुनसान पड़ी थीं. सड़क के दोनों तरफ गुलमोहर और अमलताश की जुगलबंदी चल रही थी. लड़का सुरों की गिरफ्त में घिरने लगा और जल्द ही उसे धूप मीठी लगने लगी.
लड़की गाते हुए हथेली को खोले हुए थी मानो धूप को हथेलियों में भर रही हो. लड़का मुस्कुरा दिया.
'वाकई, तुमने धूप को छांव बना दिया.' वो बोला. लड़की हंस दी.
'प्यार एक तरह का कवच होता है जो हर मुश्किल को आसानी में बदल देता है. अगर आप प्यार में हैं तो मौसम आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. मौसम क्या, कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
अगर मैं हवा को घूरकर देखूं और कहूं रुको...तो वो रुक जायेगी. अगर मैं बादलों से कहूं कि बरसो...अभी तो उन्हें बरसना ही होगा. अगर मैं समंदर से कहूं हटो सामने से मुझे जाना है अपने प्रिय के पास तो कोई कारण नहीं कि वो मुझे रास्ता न दे. प्यार में बहुत ताकत होती है...समझे. कभी इसका जादू चलाकर देखना.' लड़की की आवाज में जरा सा गुरूर शामिल हो गया था.
'देख ही रहा हूं. लड़के ने मुस्कुराकर कहा. 45 डिग्री टेम्परेचर में सड़कों पर ऐसे घूम रहे हैं जैसे बसंत के दिन हों. बीमार पड़े तो डाक्टर साब इलाज भी कर दीजियेगा. लड़के ने चुटकी ली.'
'प्रेम रोग से बड़ा क्या रोग होगा.' लड़की जोर से हंसी. 'तुम चिंता मत करो. हमें कुछ नहीं होगा. हम प्रेम के सुरक्षा कवच में हैं. '
'अच्छा अब तुम पीछे बैठो. गाड़ी मैं चलाऊंगी.'
'क्यों? लड़के ने हैरत से पूछा. '
'तुम बहुत स्लो चलाते हो. अब जरा मेरी ड्राइविंग का आनंद लो.'
लड़के के पास फिर उसकी बात मान लेने के सिवा कोई चारा नहीं था.
गुलमोहर ने अमलताश की ओर देखते हुए अपने दांत काटे और रहस्यभरी मुस्कान उसकी शाखों पर खिल गई. अमलताश को यह मुस्कुराहट बेजा लगी और उसने प्यार से कुछ फूल उन दोनों पर बरसा दिये. पीले फूलों की ओढऩी दोनों के सर पर आ गिरी.
हाथ में एक्सीलेटर आते ही लड़की ने सड़कों को रौंदना शुरू कर दिया. तेज...तेज..बहुत तेज...जितनी तेज गाड़ी चलती उतनी तेज लड़की हंसती.
'क्या कर रही हो?' लड़का घबरा गया. 'धीरे चलो. आहिस्ता.'
'क्यों?' लड़की ने एक्सीलेटर यूं दबाया मानो घोड़े को ऐड़ लगाई.
'क्यों का क्या मतलब है यार. जान यूं गंवाने के लिए भी नहीं है. धीरे-धीरे खर्च करो आराम से.'
'मरने से डरते हो?' लड़की ने एक्सीलेटर को जरा धीरे छोड़ा. लड़के का ध्यान लड़की के सवाल पर कम, बाइक की स्पीड पर .ज्यादा था.
'हां, यार डरता हूं. मर गया तो तुम्हें प्यार कैसे करूंगा. मुझे तुम्हारे साथ जीना है.'
'और मुझे तुम्हारे साथ मरना है...' लड़की ने खिलखिलाते हुए कहा. उसकी हंसी आज उसके भीतर के सारे कोनों को भर रही थी. वो बहुत खुश थी. वो अपनी इस खुशी को समूची धरती पर बो देना चाहती थी.
'अगर हममें से कोई एक मरा तो...?' लड़के के मन में मरने का डर बैठ गया था.
'ऐसा नहीं होगा. अगर हम एक-दूसरे को सच्चा प्रेम करते हैं तो हमें मौत भी जुदा नहीं कर सकती. प्लेटो ने कहा है कि प्रेम एक आत्मा होता है जिसके दो टुकड़े प्रेमियों को बांट दिये जाते हैं. अब आधा टुकड़ा जिये और आधा मर जाये ऐसा कहीं होता है क्या. इसीलिए रोमियो जूलियट, हीर रांझा, शीरी फरहाद के किस्से बने हैं.'
'अच्छा? एक आत्मा...दो शरीर. बेचारे एक शरीर को एक पूरी आत्मा भी न मिली. तुम्हारा भी ज्ञान अधूरा है. '.ज्यादा दिमाग मत चलाओ और गाड़ी मुझे दो.'
गुलमोहर ने अमलताश की ओर देखते हुए अपने दांत काटे और रहस्यभरी मुस्कान उसकी शाखों पर खिल गई. अमलताश को यह मुस्कुराहट बेजा लगी और उसने प्यार से कुछ फूल उन दोनों पर बरसा दिये. पीले फूलों की ओढऩी दोनों के सर पर आ गिरी.
हाथ में एक्सीलेटर आते ही लड़की ने सड़कों को रौंदना शुरू कर दिया. तेज...तेज..बहुत तेज...जितनी तेज गाड़ी चलती उतनी तेज लड़की हंसती.
'क्या कर रही हो?' लड़का घबरा गया. 'धीरे चलो. आहिस्ता.'
'क्यों?' लड़की ने एक्सीलेटर यूं दबाया मानो घोड़े को ऐड़ लगाई.
'क्यों का क्या मतलब है यार. जान यूं गंवाने के लिए भी नहीं है. धीरे-धीरे खर्च करो आराम से.'
'मरने से डरते हो?' लड़की ने एक्सीलेटर को जरा धीरे छोड़ा. लड़के का ध्यान लड़की के सवाल पर कम, बाइक की स्पीड पर .ज्यादा था.
'हां, यार डरता हूं. मर गया तो तुम्हें प्यार कैसे करूंगा. मुझे तुम्हारे साथ जीना है.'
'और मुझे तुम्हारे साथ मरना है...' लड़की ने खिलखिलाते हुए कहा. उसकी हंसी आज उसके भीतर के सारे कोनों को भर रही थी. वो बहुत खुश थी. वो अपनी इस खुशी को समूची धरती पर बो देना चाहती थी.
'अगर हममें से कोई एक मरा तो...?' लड़के के मन में मरने का डर बैठ गया था.
'ऐसा नहीं होगा. अगर हम एक-दूसरे को सच्चा प्रेम करते हैं तो हमें मौत भी जुदा नहीं कर सकती. प्लेटो ने कहा है कि प्रेम एक आत्मा होता है जिसके दो टुकड़े प्रेमियों को बांट दिये जाते हैं. अब आधा टुकड़ा जिये और आधा मर जाये ऐसा कहीं होता है क्या. इसीलिए रोमियो जूलियट, हीर रांझा, शीरी फरहाद के किस्से बने हैं.'
'अच्छा? एक आत्मा...दो शरीर. बेचारे एक शरीर को एक पूरी आत्मा भी न मिली. तुम्हारा भी ज्ञान अधूरा है. '.ज्यादा दिमाग मत चलाओ और गाड़ी मुझे दो.'
लड़के ने तेज थपेड़ों को अपनी जेब में भरते हुए लड़की के जलते हुए कंधों को चूम लिया. अचानक बरसती आग में सावन की नमी घुल गई.
दिन इतनी बड़े होते थे कि गाड़ी का पेट्रोल अक्सर कम पड़ जाता और सड़कें अक्सर अपना आकार बढ़ाती हुई नजर आतीं. वे अक्सर मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों से लेकर अमेरिका की करतूतों तक के पन्ने उघेड़ डालते. लड़का अक्सर थक जाता. उसे लगता कि एक दिन में कई दिन उग आये हैं. वो कहना चाहता कि चलो क्यों न किसी मॉल में चलें? या कोई फिल्म ही देख लें. चूंकि बेरोजगारी के दिन अब बीत चले थे इसलिए जेब की हालत उतनी तंग नहीं रही थी. लेकिन उसकी हिम्मत नहीं होती थी.
लड़की मॉल के नाम पर गुस्सा हो जाती थी. उसे ये नकली प्यार के अड्डे लगते थे. सिनेमा जाने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वो इन जगहों को मोहब्बत की कब्रगाह कहा करती थी. 'अब घर चलें...?' लड़के ने धीमी आवाज में कहा.
लड़की उदास हो गई. 'घर? मेरा घर तो तुम हो. तुम्हारी आवाज, तुम्हारा साथ.'
कहीं से खामोशी का एक टुकड़ा आकर उन दोनों के बीच आकर बैठ गया. लड़का समझ गया था कि उससे गलत सुर लग गया है. उसे चुप्पियों से निजात पाना नहीं आता था. लड़की चुप्पियों से बहुत घबराती थी. उसे लगता था चुप्पियों के खेतों में न जाने कौन सी खरपतवार उग आये इसके पहले सुंदर भावों वाले शब्द बो देने चाहिए. वो अपना मौन भी कहीं शब्दों में ही साधती थी. आखिर उसने अपने बीच आ बैठे खामोशी के उस टुकड़े को डपटकर भगाया.
'मेरा घर देखोगे?' उसने लड़के की आंखों में आंखें डालकर मुस्कुराते हुए पूछा? 'देखो ये मेरे घर की बाउंड्री है. वो लड़की की छाया को घेरकर कहती. उसकी बाहों के घेरे में सिमटते हुए वो कहती ये देखो दरवाजा है घर के अंदर जाने का. ये कमरा वो उसके सीने में सिमटते हुए कहती. मेरा नाम पुकारो तो...पुकारो ना...'
दिन इतनी बड़े होते थे कि गाड़ी का पेट्रोल अक्सर कम पड़ जाता और सड़कें अक्सर अपना आकार बढ़ाती हुई नजर आतीं. वे अक्सर मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों से लेकर अमेरिका की करतूतों तक के पन्ने उघेड़ डालते. लड़का अक्सर थक जाता. उसे लगता कि एक दिन में कई दिन उग आये हैं. वो कहना चाहता कि चलो क्यों न किसी मॉल में चलें? या कोई फिल्म ही देख लें. चूंकि बेरोजगारी के दिन अब बीत चले थे इसलिए जेब की हालत उतनी तंग नहीं रही थी. लेकिन उसकी हिम्मत नहीं होती थी.
लड़की मॉल के नाम पर गुस्सा हो जाती थी. उसे ये नकली प्यार के अड्डे लगते थे. सिनेमा जाने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वो इन जगहों को मोहब्बत की कब्रगाह कहा करती थी. 'अब घर चलें...?' लड़के ने धीमी आवाज में कहा.
लड़की उदास हो गई. 'घर? मेरा घर तो तुम हो. तुम्हारी आवाज, तुम्हारा साथ.'
कहीं से खामोशी का एक टुकड़ा आकर उन दोनों के बीच आकर बैठ गया. लड़का समझ गया था कि उससे गलत सुर लग गया है. उसे चुप्पियों से निजात पाना नहीं आता था. लड़की चुप्पियों से बहुत घबराती थी. उसे लगता था चुप्पियों के खेतों में न जाने कौन सी खरपतवार उग आये इसके पहले सुंदर भावों वाले शब्द बो देने चाहिए. वो अपना मौन भी कहीं शब्दों में ही साधती थी. आखिर उसने अपने बीच आ बैठे खामोशी के उस टुकड़े को डपटकर भगाया.
'मेरा घर देखोगे?' उसने लड़के की आंखों में आंखें डालकर मुस्कुराते हुए पूछा? 'देखो ये मेरे घर की बाउंड्री है. वो लड़की की छाया को घेरकर कहती. उसकी बाहों के घेरे में सिमटते हुए वो कहती ये देखो दरवाजा है घर के अंदर जाने का. ये कमरा वो उसके सीने में सिमटते हुए कहती. मेरा नाम पुकारो तो...पुकारो ना...'
वो जिद करती.
लड़का उसके कान में उसका नाम फुसफुसाता....लड़की की आंखें मुंद जातीं.
लड़का उसके कान में उसका नाम फुसफुसाता....लड़की की आंखें मुंद जातीं.
'तुम्हारी यह आवाज पूजाघर है. इसी पूजाघर में मैं हूं इस सृष्टि की पूजा करने के लिए. इस धरती पर प्रेम के अंकुरों के फूटने की प्रतीक्षा करने के लिए मैं इसी आवाज के दरीचों में बैठी हूं. बोलो अब मैं कहां जाऊं तुम्हें छोड़कर.'
लड़का इतना प्रेम देखकर दुखी हो गया.
उसे पता था कि अनाथालय की दीवारों के बीच लड़की ने घर शब्द को सिर्फ किताबों में पढ़ा था.
'मैं तुम्हें तुम्हारा घर दूंगा...' उसने भीगी आंखों से कहा.
'तुम जब ऐसा कहते हो ना तो मालूम होता है धरती पर एक भी स्त्री उदास नहीं रही. एक भी स्त्री बेघर नहीं रही.'
उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में एक बादल आकर बैठ गया. लड़का उन बादलों के बरसने के पहले कहीं छुप जाना चाहता था और लड़की अपने काजल को बहने से बचा लेना चाहती थी.
जलती दोपहर को दोनों ने मात दे दी थी. वे अंजुरी में भर-भरकर धूप पी रहे थे और सड़कों पर दिन का पीछा करते घूम रहे थे.
शाम ने आकर दिन को आंख दिखाई, चलो, बहुत हुई तुम्हारी मटरगश्ती, अब रास्ता नापो. लेकिन जेठ की दोपहरी के दिन बड़े मनमाने होते हैं. शाम आकर सर पर सवार हो जाती फिर भी मजाल है कि वो टस से मस हो जाये. लड़की को दिन की ये बदमाशियां बहुत पसंद थीं. वो जानती थी कि उसके इंतजार का सूरज शाम के आते ही उग आता है. फिर कब अस्त होगा पता नहीं. वो चाहती थी दिन को दोनों हाथों से पकड़कर बैठ जाए.
लेकिन अब न मौसम उसकी सुनते थे, न दिन-रात. समंदर भी रास्ता नहीं देता था. धूप उसे सचमुच झुलसाने लगी थी. कितनी सेफ ड्राइविंग करता था वो...फिर भी...
लड़की अमलताश के पेड़ के नीचे अकेली बैठी अपनी आत्मा के आधे टुकड़े पर छाई उदासी को खुरच रही थी.
'मैं तुम्हें घर दूंगा...' उसके कानों ने सुना. उसने खुद को अमलताश की छाया में घिरा पाया...
लड़का इतना प्रेम देखकर दुखी हो गया.
उसे पता था कि अनाथालय की दीवारों के बीच लड़की ने घर शब्द को सिर्फ किताबों में पढ़ा था.
'मैं तुम्हें तुम्हारा घर दूंगा...' उसने भीगी आंखों से कहा.
'तुम जब ऐसा कहते हो ना तो मालूम होता है धरती पर एक भी स्त्री उदास नहीं रही. एक भी स्त्री बेघर नहीं रही.'
उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में एक बादल आकर बैठ गया. लड़का उन बादलों के बरसने के पहले कहीं छुप जाना चाहता था और लड़की अपने काजल को बहने से बचा लेना चाहती थी.
जलती दोपहर को दोनों ने मात दे दी थी. वे अंजुरी में भर-भरकर धूप पी रहे थे और सड़कों पर दिन का पीछा करते घूम रहे थे.
शाम ने आकर दिन को आंख दिखाई, चलो, बहुत हुई तुम्हारी मटरगश्ती, अब रास्ता नापो. लेकिन जेठ की दोपहरी के दिन बड़े मनमाने होते हैं. शाम आकर सर पर सवार हो जाती फिर भी मजाल है कि वो टस से मस हो जाये. लड़की को दिन की ये बदमाशियां बहुत पसंद थीं. वो जानती थी कि उसके इंतजार का सूरज शाम के आते ही उग आता है. फिर कब अस्त होगा पता नहीं. वो चाहती थी दिन को दोनों हाथों से पकड़कर बैठ जाए.
लेकिन अब न मौसम उसकी सुनते थे, न दिन-रात. समंदर भी रास्ता नहीं देता था. धूप उसे सचमुच झुलसाने लगी थी. कितनी सेफ ड्राइविंग करता था वो...फिर भी...
लड़की अमलताश के पेड़ के नीचे अकेली बैठी अपनी आत्मा के आधे टुकड़े पर छाई उदासी को खुरच रही थी.
'मैं तुम्हें घर दूंगा...' उसके कानों ने सुना. उसने खुद को अमलताश की छाया में घिरा पाया...
(आज ५ जून को अमर उजाला में प्रकाशित )
लेकिन अब न मौसम उसकी सुनते थे, न दिन-रात. समंदर भी रास्ता नहीं देता था. धूप उसे सचमुच झुलसाने लगी थी. कितनी सेफ ड्राइविंग करता था वो...फिर भी...
ReplyDeleteलड़की अमलताश के पेड़ के नीचे अकेली बैठी अपनी आत्मा के आधे टुकड़े पर छाई उदासी को खुरच रही थी.
यहाँ मत रोको प्रतिभा ..चलने दो अभी ...जो लोग अभी प्यार में हैं वो टूट न जाएँ ? ना , मैं तो ना टूटने वाली .. !तुम्हारी कहानी पढ़ते हुए मैं सबसे ऊपर पता है कहाँ पर पहुंची - देखो यहाँ पर -
अगर मैं हवा को घूरकर देखूं और कहूं रुको...तो वो रुक जायेगी. अगर मैं बादलों से कहूं कि बरसो...अभी तो उन्हें बरसना ही होगा. अगर मैं समंदर से कहूं हटो सामने से मुझे जाना है अपने प्रिय के पास तो कोई कारण नहीं कि वो मुझे रास्ता न दे.
@ Babusha- जो लोग प्यार में हैं वो टूट कैसे सकते हैं बाबुशा. देखो न वो लड़की अपनी आत्मा पे छाई उदासी को खुरच रही है न? प्रेम जो एक बार हाथ थाम ले फिर आखिरी सांस तक छोड़ता ही कहाँ है. तभी तो सारे मौसम प्रेम के सजदे में होते हैं. जो प्रेम में है वो नहीं टूटेगा...कभी नहीं.. समन्दर को रास्ता देना ही होगा, हवाओं को रुकना ही होगा...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्रतिभा जी, एक पाठक के तौर पर मैं कहानी को लेकर हमेशा गंभीरता का चौला पहनता हूं। ऐसी हरकत कविता को लेकर नहीं करता। कविता मेरे लिए मन की दीवार है तो कहानी आंगन। दरअसल कहानी को मेरे अंदर का पाठक अपना मानस समझता है। आज आपकी इस कहानी को पढ़कर मेरा मानस बैचेन हुए जा रहा है। मेरा मानस अबतक ढेर सारी यादों को अपनी अंजूली में छिपाए बैठा था, आज सबके सब बाहर आने को बैचेन हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय का नार्थ कैंपस उसे याद आ रहा है। प्रेम के कुछ अनमोल पल "मिस कॉल" मारने लगे हैं। आइसक्रिम का रैपर जींस के जेब से निकलने को बैचेन हो रहा है। मैं यहीं आकर कहानी में खो जाता हूं। दरअसल कथा की यूएसपी यही है कि पाठक उसमें खुद को देखने लगे..मेरा मानस इसका गवाह है। मुझे आपके वाक्यों को पढ़कर शीतल हवा का अहसास हो रहा है। सचमुच प्यार एक तरह का कवच होता है जो हर मुश्किल को आसानी में बदल देता है. अगर आप प्यार में हैं तो मौसम आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. ...आलाप करने का जी कर रहा है। शुक्रिया
ReplyDelete:-) :-)
ReplyDelete@गिरीन्द्र नाथ झा- शुक्रिया गिरीन्द्र जी. चलिए सब मिलकर कोरस में आलाप लेते हैं...
ReplyDeleteआज सुबह-सुबह ही इसे अमर उजाला में पढ़ा था, बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteगजब! शुक्रिया।
ReplyDelete@ Manoj Patel- शुक्रिया मनोज जी!
ReplyDeleteएक नदी है, जिसमें एक रौ है, एक लय है जों मगन सी अपनी ही धुन में बही जा रही है .......जिसे खुद पर इतना यकीं है कि जीवन के हर मौसम उसका कहा मानेगे .....जिन्दगी की पिआनो पर सुर तो वो अपनी मर्ज़ी के ही बजाएगी.....एकाएक एक स्ट्रिंग बेगाना सुर बजाती है .....जों कतई रास नहीं उसे फिर भी वो खेलेगी इस सुर के साथ......जीवन के संगीत में २-४ बोल बेसुरे लग भी जाए तो क्या :-)
ReplyDeleteबहुत खूब। बधाई स्वीकारिए।
ReplyDelete---------
मेरे ख़ुदा मुझे जीने का वो सलीक़ा दे...
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
adbhut mulaymiyat hai kahani men...ladki ka charitra ijaazat kee "maya" kee yaad lee ayaa... :)
ReplyDeleteयह प्रेम कथा भी अजीब थी जिसमें ताप को बिम्ब मन कर कहने की कोशिश की गयी वह भी सही बधाई हो हमारी ओर से भी ...
ReplyDeletedhoop ki karkashta prem ne mita daali aur looke thapedo ne dono ke jismo ko tapa daala itna ki unhe ek doosre ka aagosh hee thandak pahuncha sakta tha. sundar premkahani. abhibhoot karti hui. badhai.
ReplyDelete'प्यार एक तरह का कवच होता है जो हर मुश्किल को आसानी में बदल देता है. अगर आप प्यार में हैं तो मौसम आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. मौसम क्या, कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
ReplyDeletebhut sundar bhav
vikasgarg23.blogspot.com
मॉल प्यार के नकली अड्डे हैं, यहाँ प्यार चकाचौंध में छिप जाता है।
ReplyDeleteकहानी पढ़ने तक कितनी रूमानियत थी, कहानी पढ़ने के बाद जाने कैसा उदासी का कार्बन आ गया है मन पर..... फिलहाल मैं भी खुरच ही रही हूँ उसे....!!
ReplyDeletejo log pyar men hai wo na to toot sakten hai aur na he choot sakten hai
ReplyDeletejo log pyar men hai wo na to toot sakten hai aur na he choot sakten hai
ReplyDeleteaise prem kahani ko padh ker mann khush to hua...lakin ab udas hai apni zindegi mai pyar na hone...ahsas,,bahut dard deta hai...kher chodiye...bahut accha lekhte hai aap ...sach mai...
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