जब देखती हूँ तुम्हारी ओर
तब दरअसल
मैं देख रही होती हूँ अपने उस दुःख की ओर
जो तुममें कहीं पनाह पाना चाहता है.
जब बढाती हूँ तुम्हारी ओर अपना हाथ
तब थाम लेना चाहती हूँ
जीवन की उस आखिरी उम्मीद को
जो तुममे से होकर आती है .
जब टिकाती हूँ अपना सर
तुम्हारे कन्धों पर
तब असल में पाती हूँ निजात
सदियों की थकन से
तुम्हें प्यार करना असल में
ढूंढना है खुद को इस स्रष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज
और साधना है प्रेम का राग...
khubsurat..lajawab..
ReplyDeleteएहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeleteतुम्हें प्यार करना असल में
ReplyDeleteढूंढना है खुद को इस स्रष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज
और साधना है प्रेम का राग...
वाह! क्या बात है...
सुन्दर!
ReplyDeleteतुम्हें प्यार करना असल में ढूंढना है खुद को
ReplyDeleteबहुत खूब... कविता बड़ी सुगमता से उतरती है मन के आँगन में.
sidhi sachhi achhi kavita.
ReplyDeleteसाधना का आनन्द, हर विषय में।
ReplyDeletethis one is the best poem of yours i have read so far... well done..
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