मंज़र है वही ठठक रही हूँ
हैरत से पलक झपक रही हूँ
ये तू है के मेरा वहम है
बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ
जैसे के कभी न था तार्रुफ़
यूँ मिलते हुए झिझक रही हूँ
पहचान मैं तेरी रोशनी हूँ
और तेरी पलक पलक रही हूँ
क्या चैन मिला है सर जो उस के
शानों पे रखे सिसक रही हूँ
इक उम्र हुई है ख़ुद से लड़ते
अंदर से तमाम थक रही हूँ.
-परवीन शाकिर
kya baat hai ...
ReplyDeleteक्या चैन मिला है सर जो उस के
ReplyDeleteशानों पे रखे सिसक रही हूँ !
Bahut khoob.
बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ
ReplyDeletevaah
kitni sundar baat hai ye.
ReplyDeleteये तू है के मेरा वहम है
ReplyDeleteबंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ
क्या बात है !!