Friday, February 4, 2011

इक उम्र हुई है ख़ुद से लड़ते


मंज़र है वही ठठक रही हूँ
हैरत से पलक झपक रही हूँ

ये तू है के मेरा वहम है
बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ

जैसे के कभी न था तार्रुफ़
यूँ मिलते हुए झिझक रही हूँ

पहचान मैं तेरी रोशनी हूँ
और तेरी पलक पलक रही हूँ

क्या चैन मिला है सर जो उस के
शानों पे रखे सिसक रही हूँ

इक उम्र हुई है ख़ुद से लड़ते
अंदर से तमाम थक रही हूँ.

-परवीन शाकिर

5 comments:

  1. क्या चैन मिला है सर जो उस के
    शानों पे रखे सिसक रही हूँ !

    Bahut khoob.

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  2. बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ

    vaah

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  3. ये तू है के मेरा वहम है
    बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ

    क्या बात है !!

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