यही तोहफ़ा है यही नज़राना
मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ
रंग में तेरे मिलाने के लिये
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन
पहले कब आया हूँ कुछ याद नहींमैं जो आवारा नज़र लाया हूँ
रंग में तेरे मिलाने के लिये
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन
लेकिन आया था क़सम खाता हूँ
फूल तो फूल हैं काँटों पे तेरे
अपने होंटों के निशाँ पाता हूँ
मेरे ख़्वाबों के वतन
चूम लेने दे मुझे हाथ अपने
जिन से तोड़ी हैं कई ज़ंजीरे
तूने बदला है मशियत का मिज़ाज
तूने लिखी हैं नई तक़दीरें
इंक़लाबों के वतन
तूने बदला है मशियत का मिज़ाज
तूने लिखी हैं नई तक़दीरें
इंक़लाबों के वतन
फूल के बाद नये फूल खिलें
कभी ख़ाली न हो दामन तेरा
रोशनी रोशनी तेरी राहें
चाँदनी चाँदनी आंगन तेरा
माहताबों के वतन
कभी ख़ाली न हो दामन तेरा
रोशनी रोशनी तेरी राहें
चाँदनी चाँदनी आंगन तेरा
माहताबों के वतन
बढ़िया रचना ...सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.
नायाब ! नायाब !!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया .... इसे हम तक पहुंचाने के लिए ....
waah !!
ReplyDeleteshukriya
ब्लाग की नई साज-सज्जा बहुत सुंदर लगी। कैफी साहब तो हमेशा उम्दा रहे हैं।
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जय हिंद !!
रंग में तेरे मिलाने के लिये
ReplyDeleteक़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन
...कैफ़ी आजमी को अभी- अभी पढ़ना शुरू किया है लेकिन अभी तक उनकी हर रचना बेजोड़ है...सुंदर पंक्तियाँ पढ़ाने के लिए शुक्रिया और साथ ही स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ.