आओ तुम्हें आज तुम्हारी पसंद का गाना सुनाती हूं...मैंने मुस्कुरा कर जब मां से कहा तो वो चौंक गईं. मेरी पसंद?
उनका वो अचकचाया चेहरा देखकर मन भीतर तक कचोट गया. उन्हें यह बात इतनी अजीब क्यों लगी कि उनकी पसंद भी कुछ हो सकती है. हमारा परिवार ठीकठाक आधुनिक विचारों का ठीहा है. कहीं किसी पर कोई जोर-जबर नहीं. मां भी पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा हैं. विदेश यात्राएं भी कर चुकी हैं लेकिन सोचती हूं तो सचमुच सब कुछ उनके जीवन में बस वैसे आया, जैसा बाकियों ने निर्धारित किया. यह हिंदुस्तानी स्त्रियों की नियति है. खाने से लेकर पहनने तक दूसरों की पसंद को अपनाने में ही उन्हें सुख मिलता है. इस सुख में वे खुद को खोती जाती हैं अपनी पसंद भी, नापसंद भी.उन्हें इस नियति से भी तो मुक्त होना है.
आज मां की पसंद का ये गाना यहां लगा रही हूं. ये गाना जब मैं छ: बरस की थी, तब वे हारमोनियम पर बजाती थींं. साथ में गाती भी थीं. जब भी ये गाना सुनती हूं, वक्त के उसी हिस्से में पहुंच जाती हूं जहां मां गाने में डूबी हुई हैं. एक कमरे का वो छोटा सा साधनहीन लेकिन प्यारा सा घर. इस गाने को यहां देते हुए मन कुछ गीला सा है कि हमारे होते हुए भी मां को यह क्यों कहना पड़ा कि मेरी पसंद?
फिलहाल उनकी पसंद का ये गाना...
(ये तुम्हारे लिए माँ !)
अब ये नियति बदल रही है। आगे और बदलेगी। आपकी पोस्ट ने कुछ सीख भी दी। कभी-कभी हमें भी ऐसा कुछ करना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पसंद माँ की..अच्छा लगा गीत सुनकर.
ReplyDeleteकौन कहता है कि ये नियति है, ये नियति हुआ करती थी. अब और ज्यादा दिन तक नहीं. फिर आपका तो ये गाना भी देखिये उनके ही साथ है....आखिर ये ज़िन्दगी उन्ही की है.
ReplyDeleteसाथियो, आभार !!
ReplyDeleteआप अब लोक के स्वर हमज़बान[http://hamzabaan.feedcluster.com/] के /की सदस्य हो चुके/चुकी हैं.आप अपने ब्लॉग में इसका लिंक जोड़ कर सहयोग करें और ताज़े पोस्ट की झलक भी पायें.आप एम्बेड इन माय साईट आप्शन में जाकर ऐसा कर सकते/सकती हैं.हमें ख़ुशी होगी.
स्नेहिल
आपका
शहरोज़
पुरानी यादों को उकेरना अच्छा लगता है ।
ReplyDeleteआपकी माताजी को नमन. इस गीत में एक सम्मोहन है. बहुत दिनों के बाद सुनने को मिला.आभार.
ReplyDeleteमेरी भी पसंदीदा गीत है यह....
ReplyDeleteबाकी तो..नारी जीवन तेरी यही कहानी...
आज सुबह यह गीत सुना था किन्तु ...
ReplyDeleteगीत के बारे में कुछ नहीं कहूँगा. गीत तो इस पोस्ट का निमित्त भर है मेरे हिसाब से . असली बात तो वह है जो संवेदना के तार को छेड़ देने वाली है>
और क्या कहूँ...
साहित्यिक और महत्वपूर्ण ब्लॉग्स को समादरण की श्रृंखला में आपके ब्लॉग पोस्टिंग का चयन किया गया है । बधाई । कृपया www.srijangatha.com देखें...
ReplyDeleteबीना राय का चेहरा अलौकिक है/
ReplyDeleteइत्नी समझ /
इत्ना wisdom /
इत्ना सुन्दर्ता....
ऐसा चेहरा नही देख्ना पर्दे पर आज तक /
what do u say ??