वो तवायफ
कई मर्दों को पहचानती है
शायद इसीलिये
दुनिया को ज्यादा जानती है
उसके कमरे में
हर म$जहब के भगवान की एक-एक तस्वीर
लटकी है
ये तस्वीरें
लीडरों की तकरीरों की तरह नुमाइशी नहीं
उसका दरवाजा
रात गए तक
हिंदू
मुस्लिम
सिक्ख
ईसाई
हर $जात के आदमी के लिए
खुला रहता है
खुदा जाने
उसके कमरे की सी कुशादगी
मस्जिद और मंदिर के आंगनों में कब पैदा होगी...
-निदा फाजली
(कुशादगी- विस्तार)
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
ReplyDeleteयह बात तो बार-बार कही जाती रही है। लेकिन बहुतों को पचती नहीं। निदा फाजली ने भी इसे बेहतरीन ढंग से फिर कहा है।
ReplyDeleteexcellent creation by nida fazli sahab!
ReplyDeleteबहुत अच्छी नज्म है।प्रतिभा जी को बधाई ।
ReplyDeleteबात और कहने का निदा साहब का अंदाज, दोनों ही शानदार है
ReplyDeleteइस सुन्दर पोस्ट की चर्चा "चर्चा मंच" पर भी है!
ReplyDelete--
http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/193.html