Tuesday, June 22, 2010

कौमी एकता और तवायफ


वो तवायफ
कई मर्दों को पहचानती है
शायद इसीलिये
दुनिया को ज्यादा जानती है
उसके कमरे में
हर म$जहब के भगवान की एक-एक तस्वीर
लटकी है
ये तस्वीरें
लीडरों की तकरीरों की तरह नुमाइशी नहीं
उसका दरवाजा
रात गए तक
हिंदू
मुस्लिम
सिक्ख
ईसाई
हर $जात के आदमी के लिए
खुला रहता है
खुदा जाने
उसके कमरे की सी कुशादगी
मस्जिद और मंदिर के आंगनों में कब पैदा होगी...
-निदा फाजली
(कुशादगी- विस्तार)


6 comments:

  1. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

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  2. यह बात तो बार-बार कही जाती रही है। लेकिन बहुतों को पचती नहीं। निदा फाजली ने भी इसे बेहतरीन ढंग से फिर कहा है।

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  3. excellent creation by nida fazli sahab!

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  4. बहुत अच्छी नज्म है।प्रतिभा जी को बधाई ।

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  5. बात और कहने का निदा साहब का अंदाज, दोनों ही शानदार है

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  6. इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा "चर्चा मंच" पर भी है!
    --
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/193.html

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