Saturday, December 26, 2009

चाँद से दोस्ती

चांद से मेरी दोस्ती
हरगिज न हुई होती
अगर रात जागने
और सड़कों पर फालतू भटकने की
लत न लग गई होती
मुझे स्कूल के ही दिनों में
उसकी कई आदतें तो तकरीबन
मुझसे मिलती-जुलती सी हैं
मसलन वह भी अपनी कक्षा का
एक बैक बेंचर छात्र है
अध्यापक का चेहरा
ब्लैक बोर्ड की ओर घूमा नहीं
कि दबे पांव निकल भागे बाहर...
और फिर वही मटरगश्ती
सारी रात सारे आसमान में...
- राजेश जोशी

10 comments:

  1. चांद से मेरी दोस्ती
    हरगिज न हुई होती
    अगर रात जागने
    और सड़कों पर फालतू भटकने की
    लत न लग गई होती

    बहुत सुन्दर!

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  2. सादर वन्दे
    चाँद व व्यक्ति की तुलना,
    रत्नेश त्रिपाठी

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  3. बहुत सुंदर भाव..राजेश जी बढ़िया रचना..बधाई

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  4. बहुत सटीक भाव!!

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  5. आज दिन होगा खास इठलाता हुआ सा
    सुबह एक ताजगी भरी कविता पढ़ी है।

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  6. ekdam taazagi se bhari chaandani jaisi kavita padhaane ke liye shukriya

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  7. अगर रात जागने
    और सड़कों पर फालतू भटकने की
    लत न लग गई होती

    बीते दिनों की याद ताज़ा करते हुवे वर्तमान में बैठना ......... बहुत अच्छी रचना ........

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  8. bahut khoobsurat shabd bhaav....dil le gaye.

    अगर रात जागने
    और सड़कों पर फालतू भटकने की
    लत न लग गई होती

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  9. आपका चुनाव बहुत सुंदर होता है. वाकई बड़ी नाजुक और सुंदर अभिवक्ति है.

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  10. आज दिन होगा खास इठलाता हुआ सा
    सुबह एक ताजगी भरी कविता पढ़ी है।

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