Saturday, August 8, 2009

फासले- मारीना त्स्वेतायेवा


फासले..., कोसों, मीलों लम्बे...
हमें अलग किया गया,
भेजा गया बहुत दूर
ताकि चुपचाप जीते चले जाएं हम
पृथ्वी के दो अलग-अलग हिस्सों में।
फासले..., कोसों, मीलों लम्बे...
उखाड़ा गया हमें,
पटका गया इधर-उधर
बांधे गये हाथ,
ठोंकी उन पर कीलें
पर मालूम नहीं था उन्हें
अंत:करण और धड़कती नसों का...
किस तरह होता है मिलन...

(अनुवाद: डा: वरयाम सिंह)

7 comments:

  1. कुछ कविताओं का अर्थ प्रेषण परिवेश, भावभूमि और वातावरण से इस कदर जुड़ा होता है कि अनुवाद उनके साथ न्याय नहीं कर पाता।

    यह कविता उसी श्रेणी की है।

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  2. बेहतरीन कविता...बधाई! जी खुश हो गया...

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  4. कविता की हर पंक्ति सुन्दर है।
    बधाई।

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  5. प्रतिभा जी बहुत सुन्दर कविता है !

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  6. kavita acchhi hai. padhkar achchha lagta hai.
    Mujhse mere gunah ki wajah puchhate rahe,
    Itna bhi nahi jaante gunahgar kaun hai
    Deepka Mishra
    I next Kanpur

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  7. आपकी कविता आज के ज़माने में परही जाने वाली रचनाओं से भिन्न लगी आपको साधुबाद

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