गुलज़ार वाकई स्वप्निल कवि हैं.
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तनहाई में ख्वाब टूटे न कोई जाग न जाये देखोसपनो का बहुत अच्छे ढंग से मानवीकरण किया है बधाई
गुलज़ार वाकई स्वप्निल कवि हैं.
ReplyDeleteकांच के ख्वाब हैं
ReplyDeleteबिखरे हुए तनहाई में
ख्वाब टूटे न कोई
जाग न जाये देखो
सपनो का बहुत अच्छे ढंग से मानवीकरण किया है
बधाई