पूरा दु:ख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चांद
किस मकतल से गुजऱा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चांद
मेरे मुंह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चांद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद।
मकतल- जहां वध किया जाता है
हिज्र की शब और ऐसा चांद
किस मकतल से गुजऱा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चांद
मेरे मुंह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चांद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद।
मकतल- जहां वध किया जाता है
bahut sunder abhivyakti hai shubhkamnayen
ReplyDeleteप्रतिभा जी अच्छा लिखा है
ReplyDelete"इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चाँद "
विजय
परवीन शाकिर की शायरी मुझे बहुत प्रिय रही है....उनकी ग़ज़लों में आम विरही स्त्रियों की टीस है और उनके प्रेम को कभी ना समझ पाने की पुरुषों की असफलता का बयान भी. उनकी असमय मौत से एक बड़ी खाली जगह बनी है जो अब भी अखरती है..... इन ग़ज़लों से आपने सुदूर किसी अतीत में पहुँचा दिया.
ReplyDeleteप्रतिभा जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल कही आपने
श्रेष्ठ भाव लिए सुन्दर गजल है
ये शेर ख़ास पसंद आया
किस मकतल से गुजऱा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद
वीनस केसरी
अल्लाह केसरी जी हमने नहीं परवीन शाकिर ने लिखा है इस खूबसूरत ग$जल को. सारी बधाई, आप सबका स्नेह उनका है. मैं भी उनकी घनघोर फैन हूं.
ReplyDeleteचाँद कभी तन्हा नही होता,संग में रहते तारे हैं।
ReplyDeleteनभ की नगरी उसके संग,रहते सभी सितारे हैं।
उम्दा शेर है परवीन जी की उनके इन शेरो में चंद लाइन मेरी भी ...
ReplyDeleteकभी है पूरा कभी अधूरा
बदला बदला होगा चाँद !
किस रकीब का पीछा करता
पागल पागल फिरता चाँद !