Saturday, April 25, 2009

उफ़ ये भीगा हुआ अखबार !

कल लखनऊ के सारे अखबार खून से रंगे होंगे। लॉमार्टीनियर स्कूल के बच्चों की वैन सुबह-सुबह रोडवेज की बस से टकरा गई और पूरी सुबह में, शहर में दर्द घुल गया। एक बच्चे की मौत हो गई. कई घायल हुए. अखबार की दुनिया भी अजीब होती है. संवेदनशील होने के लिए कितनी बार संवेदनाओं का गला दबाना पड़ता है. सारा दिन एक्सीडेंट की फोटो, कवरेज, वर्जन, खबरों के एंगल इन्हीं सब में दिन बीता। कैसी मजबूरी है कि फिर उन्हीं हाथों में अगली सुबह अपने कलेजे के टुकड़ों को सौंपना है. जिं़दगी को फिर चलना है. ऊपरवाले का यह कैसा इंसाफ है? दिल दर्द से भरा है. काश! कोई कुछ कर पाता. कम कर पाता उन मां-बाप का दर्द. काश!
श्रधांजलि.....

5 comments:

  1. बिकती है सम्वेदना मिलते सूत्र हजार।
    चौथा खम्भा बन गया बहुत बड़ा बाजार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. ये भी जिंदगी का एक विचित्र रूप है प्रतिभा जी।

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  4. जैसा कि श्‍यामल सुमन ने लिखा कि चौथा खम्‍भा बन गया बहुत बडा बाजार। श्‍यामल जी आप भावना को समझ नहीं पाए, इनके मन में भी दर्द है, खबर लिखना हमारी मजबूरी है, आपको अखबार में समाचार नहीं मिलेगा तो शिकायत भी करेंगे। हम अपनी आंखों के आंसू छिपाकर भी कई बार काम करते हैं। ऐसा एक बार नहीं, कई बार होता है, कभी नजदीक से देखना, चौथा खम्‍भा दर्द को समझता है, अहसास करता है, खुद रोता है लेकिन दुनिया को चलना है, इसलिए हम भी चलते हैं। आपकी बात आपको मुबारक। हर बात में मीडिया को कोसना कहां तक उचित।

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