Friday, April 24, 2009

प्रेम तो नसीब है!

कितने असहाय, कितने कमजोर, कितने निरीह हो गये दुनिया के सारे शब्द, जब दिल के भावों को जस का तस पहुंचने की बारी आयी. दुनिया का हर शब्दकोश निरर्थक, सारी भाषायें बौनी. कांपते होठ लेकिन शब्द खामोश. कोरों पर अटका हुआ एक आंसू ही काफी. दुनिया के सारे रूमानी शब्दों ने उस अनमोल आंसू के आगे सजदा किया और कहा प्रेम! सचमुच भाषाओं में, शब्दों में कहां समा पाते हैं भाव, जब बात प्रेम की होती है. तभी तो दुनिया के बड़े से बड़े साहित्यकार प्रेम का इजहार करते समय निरे मूरख ही नजर आये. किसी ने प्रेम में अपने भीतर के भय को व्यक्त किया, किसी ने अनंत की यात्रायें कीं. किसी ने शब्दों को आत्मा की तपिश में तपाकर सोना बना दिया, ताकि वे रूह में जज्ब हो सकें सदियों तक के लिए. कोई तो गुस्से में बिफर ही पड़ा कि तुम समझ जाओ ना सब कुछ, मुझसे नहीं कहा जा रहा कुछ भी.ऊंची-नीची, टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से गुजरते प्रेम को दुनिया के मशहूर लोगों के करीब जाकरमहसूस करने का मकसद सिर्फ इतना सा था कि देखें तो जरा इनका क्या हाल हुआ था जब ये प्रेम में थे. बात साफ नजर आई कि सब के सब औंधे मुंह ही पड़े नजर आये। अव्यक्त को व्यक्त करने की पीड़ा में उलझे हुए. अनाड़ीपन में, उलझन में जो कुछ संप्रेषित हुआ वह दरअसल प्रेम की उदात्तता का एक जरा सा हिस्सा भर है.मेरे प्रिय कथाकार प्रियंवद कहते हैं कि प्रेम मनुष्य की स्वतंत्रता की प्रखरतम अभिव्यक्ति है. लेकिन देखिये जरा ये अभिव्यक्तियां इन पत्रों में कितनी कम अभिव्यक्त हो सकी हैं. यह प्रेम ही है जो इतना उदार हो सकता है कि दे सब कुछ और मांगे कुछ भी नहीं. कैसा होता है ये प्रेम है जो ईश्वर के करीब ले जाकर खड़ा कर देता है. जितना देता है, उतना ही मन भरता जाता है. सृष्टिकर्ता खुद सर पर हाथ फेरने को व्याकुल हो उठे, ऐसे प्रेम की पात्रता आसान तो नहीं. प्रेम अतिरेक है, जोखिम है, स्वतंत्रता है. अपने क्षुद्रतम से उठकर अपने ही उच्चतम की ओर जाने का प्रयत्न. खुद से खुद का मिलन. कोई नियम नहीं, कोई बंधन नहीं. हम सब कहीं न कहीं ऐसे गहन प्रेम की एक बूंद के अभिलाषी हैं, जो हमारे जीवन के मरुस्थल को समंदर बना दे. लेकिन प्रेम तो नसीब है और नसीब सबका कहां होता है. हम बस दुआ कर सकते हैं कि जब, कभी यह नसीब हमारे करीब से होकर गुजरे, तो कहीं हमसे ही टकराकर टूट न जाये, बिखर न जाये.
प्रेम से भरे इन पत्रों का ब्लॉग जगत में जिस तरह से स्वागत हुआ, उससे एक बात साफ जाहिर होती है कि भीतर ही भीतर ऐसे सच्चे प्रेम की कामना में सब कहीं न कहीं तरस रहे हैं. कॉफी के झाग में प्रेम का असल रूप गुमा नहीं है अभी तक। ब्लॉग जगत के नये दोस्तों का आभार, जिन्होंने पढऩे में दिलचस्पी दिखाकर हौसला बनाये रखा.रवींद्र व्यास जी का खासतौर पर शुक्रिया जिन्होंने वेब दुनिया पर मेरे ब्लॉग की सुंदरतम रूप में चर्चा की. अमर उजाला अखबार भी जिसने संपादकीय पेज पर मेरी दुनिया को जगह दी. कुछ अंतराल के बाद इसी तरह डायरी देने की योजना है. तब तक...मिलते रहेंगे.
- प्रतिभा

9 comments:

  1. जो ईश्वर के करीब ले जाकर खड़ा कर देता है. जितना देता है, उतना ही मन भरता जाता है. सृष्टिकर्ता खुद सर पर हाथ फेरने को व्याकुल हो उठे...kya baat hai.

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  2. वाह!! पूरा ब्लाग ही प्रेम पर,बहुत बढिया!
    क्या संयोग है कि आज ही मैने इसी विषय की रचना प्रकशित की है और आज ही आपका ब्लॉग देखा

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  3. kucch patr padhey..kuch itminaan se padhney ke liye rakh chhorey hain..thx..

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  4. kya baat hai pratibhaa jee, bahut sundar shabdon ke saath prem kaa chitran kia aapne....

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  5. असल में प्रेम का वास्तविक स्वरुप क्या है..यह कोई न जान सका है..हर किसी ने इसकी विवेचना अपने अपने ढंग से की है.प्रेम से सरोबार हर पत्र इस प्रेम की एक अलग ही व्याख्या करता है..

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  6. बहुत ही बढ़िया रोचक अभिव्यक्ति . धन्यवाद.

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  7. Makes sense. Came in to this world for the first time .... A nice experience .....

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  8. Pratiba ji,

    bahut hi badhiya. ek ek shabd dil ko chu gaye. sahi kaha hai , shabd kab pyar ki pribhasa kab de pate hai. mook hai perm par sabkuch kah deta hai

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