Friday, March 20, 2009

ताकि उम्र भर जिया जा सके


अपनी आंखों से कहो
की हट जायें मेरी आंखों के सामने से
यूँ ही सुबह से शाम तक
रत भर, आँख आँख फिरना
मुझे जरा नहीं suhaata
कह दो की हट जायें
वे मेरे सामने से,
वे इस कदर रौशन हैं
की मेरी आँखें चुन्धियाने लगती हैं
कह दो उनसे
वे इतना शोर न मचाया करें
क्योंकि उनकी पुरजोर आवाजों के बीच
मेरी बेचैन से जिंदगी में
खलल padata है।
कह दो की वे समन्दर बन
लहराया न करें, जहाँ-तहां
उसकी saree लहरें
मेरी पलकों को नम कर जाती हैं।
वे इतनी गहरी हैं
की दिल doobta hi jata है
नहीं-नहीं, कह दो उनसे की
वे इतनी खामोश न रहा करें
उनकी चुप्पी मुझे तरसती है,
बेपनाह उदासी दे जाती है।
कहो अपनी आंखों से
की जुबान बनें
udel den अपनी भाषा के
तमाम अर्थ
मेरी आंखों में।
मैं हलके से
अपनी पलकें झांप लूँगा
उन आँखों समेत
कह दो एक बार
मनुहार करके
की मेरी आंखों के सामने से न haten
क्योंकि ख्यालों में ही सही
मुझें उन आँखों से ही
दुनिया रौशन लगती है।
मेरी आंखों में
सपने जागते हैं कह दो उनसे
की वे डटी रहें, ta-उम्र
मेरी आंखों के सामने
ताकि उम्र भर जिया जा सके।

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