Sunday, March 22, 2009

आज फिर जीने की तमन्ना है...

'कांटों से खींच के ये आंचल....तोड़ के बंधन बांधी पायल....कोई न रोको दिल की उड़ान को...दिल वो चला.... ये गाना मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगा. बहुत से गाने अच्छे नहीं लगते हैं हमें, लेकिन यह गाना बहुत अच्छा होते हुए भी अच्छा नहीं लगा. कारण...शैलेंद्र जैसे गीतकार के लिखे गाने में मुझे बंधनों को तोड़कर पायल बांधने वाली बात $जरा कम जंचती है. पायल भी बंधन ही तो है. खैर, फिल्म 'गाइड जिसका यह गाना है में पायल बंधन नहीं मुक्ति का मार्ग है, यह बात काफी बाद में समझ में आई और इसके बाद गाने से थोड़ा अपनापा हो ही गया. इतना तो तय है लेकिन कि यह गाना सौंदर्यबोध का गान नहीं मुक्ति का गान है. और यही इसका सौंदर्य है.पिछले दिनों इस मामले में मेरी राय जब गीता श्री के ब्लॉग पर उनकी राय से मिलती न$जर आई तो रुकना लाजिमी था. आज के दौर में सौंदर्यबोध, सौंदर्य प्रतीकों और सौंदर्य को रीडिफाइन करने का वक्त है. कब तक नायिकाओं को चूड़ी, बिंदी, झुमके, पायल जैसे सौंदर्य के उपमानों में उलझना पड़ेगा. आज के दौर में दिन-रात काम में उलझी स्त्रियां, दौड़ती-भागती स्त्रियां यह सुनने को बेकरार नहीं हैं कि आपकी साड़ी बहुत सुंदर है, आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं. वे यह सब सुनकर ठिठक सकती हैं, मुस्कुरा सकती हैं कभी-कभी झल्ला भी सकती हैं लेकिन इससे उनके काम पर कोई असर नहीं पड़ता. अगर कोई उनसे यह कहता है कि आपका काम शानदार है तो उनके चेहरे पर गहरे संतोष की लकीर दिखती है. उनके काम को ताकत मिलती है. गीता श्री की चिंता एकदम जायज है कि जिस वक्त में लड़कियां जींस-टॉप पहनकर दौड़ती हुई स्पीड में काम कर रही हों ऐसे में चूड़ी की खनखनाहट और पायल की रुनझुन जैसे प्रतीक बेमानी ही लगते हैं. आसमान बड़ा हो रहा है. बंधन पिघल रहे हैं. अब तो 'आती हुई लहरों पर जाती हुई लड़की... में सौंदर्य देखना होगा. उसका सौंदर्य उसके सपनों का है, उसकी ताकत उसकी महत्वकांक्षाओं की उड़ान है. गीता श्री का यह ब्लॉग कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इसमें कॉन्ट्रीब्यूट करने वालों के पास भी नये जमाने की नई सोच है. अगर महिलाओं को, उनके काम को उनके भीतर के संसार को समझना हो, उनके अंदर की आग को जानना हो तो गीता के नुक्कड़ पर रुककर एक कप चाय पीना अच्छा अनुभव हो सकता है. तो आइये क्लिक करते हैं http://hamaranukkad.blogspot.com- प्रतिभा कटियार

आई नेक्स्ट के एडिट पेज पर प्रकाशित

1 comment:

  1. Aap lig Naari mukti ki baat karte karte thoda adhik touchy ya cynical ho jaate hain,jis Bindi,choodi ya shringar ke chinhon ki baaten aap ne ki hain wo naari ne prushon ke kehne se nahi balki swayam ki sundarta ko badhane ke liye apnaye the..yug badalta gay aur naari ke shareer par shringar chinh badfalte gaye...aaj bindi aur choodi ki jagah designer jewellery hai aur chehre ko rangne wale naye make up packs hain,high heels hain atyadhunik style ke vastra hain(unko aavaran ka darza dena kathin hai)ye to aisi cheezen hain jis ko dharan karke stree prasann bhi hai aur swachanda bhi...aur purush to khush hain hi...to bandhan ki baat kahan se aa gayi..autr fir sab bandhan bure nahi hote zara gaur se apne aas paas ke paripeksha ko dekhiye to baat spashta ho jayegi

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