Saturday, March 21, 2009

काश !


क्यों मुझे बुरी लगती हैं
बुरी लगने वाली बात्तें
क्यों मेरा दिल टूट जाता है
दूसरों पर जब आती हैं विपत्तियाँ
क्यों मुझे रोना आता है....
काश ! मैं काठ का होता
काश ! मैं होता धोबी का पाट
काश ! मैं कंकर, पत्थर, पहाड़ होता...
- डॉ बद्री नारायण

1 comment:

  1. kash aisa hota,
    to kya main phir bhi aisa hi hota,
    kya main padhata aisa hi paath,
    shayad nahin,
    kyunki main baitha hoon beech haat!

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