उसकी खुशबु से पूरा कमरा
महक रहा था न जाने कब और कैसे
मेरे सिरहाने
कोई चुपके से वसंत सजा गया।
इतने वर्षों से तो मैंने
कभी पहचाना नहीं इसे
और आज जब देखती हूँ
तो लगता है सदियों पुरानी है
पहचान
महकती अम्राइयां, कूकती कोयलें
और खिलखिलाता बचपन
सबकुछ बेहद करीबी से
लगते हैं आज
क्या मेरे जीवन का
पहला वसंत है.....
बहुत सुंदर लिखा है ...बधाई ..
ReplyDeleteBEHUD KHUBSURAT RACHANA..MAN KO CHHU GAYI.
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