Thursday, January 29, 2009

यार जुलाहे!

मुझको भी तरकीब सिखा
कोई यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है की
ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ
फ़िर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
एक भी गांठ गिरह बुन्तर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो एक बार ही बुना था
एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे......
- गुलजार

1 comment:

  1. ye rahana humne kahi suna bhi audio me
    pr likhit padne ka maja kuch aur he

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