Friday, December 12, 2008

शुक्रिया


शुक्रिया मैं कितनी अहसानमंद हूँ

उनकीजिन्हें मुहब्बत नहीं करती।

यह मान लेने में भी कितना सुकून है

की उनकी किसी और

को मुझसे ज्यादा जरूरत है

और कितना चैन है यह

सोचकर की मैंने भेड़िया

बनकर किसी की bhedon

पर कब्जा नहीं किया

कितनी शान्ति, कितनी आजादी

जिसे न मुहब्बत छीन सकती है

न दे सकती है

अब मुझे किसी का इंतज़ार नहीं

खिड़कियों और दरवाजे के दरमिया

कोई चहलकदमी नहीं

सूरज-घड़ी को भी मात दे रहा है मेरा सब्र।

main समझ गई हूँ जो प्यार नहीं समझ सकता,

मैं माफ़ कर सकती हूँ

जो प्यार नहीं कर सकता।

मुलाकात और ख़त के बीच

अब होते हैं चंद दिन-ज्यादा-से-ज्यादा

चंद हफ्ते कोई युगांतर नहीं होता

जिन्हें मुहब्बत नहीं करती

उनके साथ यातरायें

कितनी सीधी-सरल होती है

उनके साथ किसी संगीत समारोह में

चले जाओ या गिरजाघर में

और जब हमारे बीच होते है

सात पहाड़ और सात नदिया

तो उन पहाडों और नदियों के फासले

किसी भी नक्शे में देखे जा सकते है

आज मैं एक संगीतहीन समतल समय में

एक यथार्थ छितिज से घिरी हुई

सलीम और साबुत हूँ तो

यह उन्हीं की बदुलत है

शायद वे ख़ुद नहीं जानतेकी

उनके खाली हाथों में कितना कुछ है

लेकिन मैंने तो उनसे कुछ भी नहीं पाया

प्यार के पास इसके सिवा भला क्या जवाब होगा

इस सवाल का.....

8 comments:

  1. dear madam,

    i came first time to your blog and read the posts , this one is very impressive . and I enjoyed the poem


    Pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/

    Vijay

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  2. jo sambhav ka hota hai uska bhi apna anand hota hai
    kap
    www.batkahi-kap.blogspot.com

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  3. kosis kamyab hoti hai. blog ke ek saal per badhai
    avi

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  4. bahut khub likha hai

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  5. bahut khub likha hai

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  6. आपकी कविता का अर्थ, जो मुझे समझ में आया....

    दोस्‍ती और प्रेम का रिश्‍ता जब एक ही इंसान को निभाना होता है, किसी एक के साथ। दोस्‍ती को प्रेम का रंग देना या प्रेम को दोस्‍ती का रंग देने पर ऐसा होता है। रंगों के इस फेरबदल में एक दिन जिंदगी से रंग ही गायब होने लगता है। वरना प्रेमी तो अकेलेपन में भी भंवरे की तरह मदमस्‍त रहता है। बस प्‍यार का रस उसने चखा हो, एक बार ही सही। संतृप्‍त हो जाती है आत्‍मा।

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  7. आपकी कविता का अर्थ, जो मुझे समझ में आया....

    दोस्‍ती और प्रेम का रिश्‍ता जब एक ही इंसान को निभाना होता है, किसी एक के साथ। दोस्‍ती को प्रेम का रंग देना या प्रेम को दोस्‍ती का रंग देने पर ऐसा होता है। रंगों के इस फेरबदल में एक दिन जिंदगी से रंग ही गायब होने लगता है। वरना प्रेमी तो अकेलेपन में भी भंवरे की तरह मदमस्‍त रहता है। बस प्‍यार का रस उसने चखा हो, एक बार ही सही। संतृप्‍त हो जाती है आत्‍मा।

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  8. I Read Your Blog in Aha jindgi,It was so shooting for hearts thanks!

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