‘व्हेन लाइफ़ गिव्स यू टैंजरीन्स’ (कोरियन ड्रामा)
देर से प्यास लगी थी। नहीं जानती ये प्यास कितनी पुरानी थी। लेकिन रोम-रोम प्यास से पीड़ित था हालांकि होंठ हमेशा मुस्कुराते रहते थे। सूखे होंठों वाली खुरदुरी मुस्कुराहट। बीते शनिवार, इतवार इस प्यास पर एक झरना फूट पड़ा। उस झरने का नाम था, ‘‘व्हेन लाइफ़ गिव्स यू टैंजरीन्स’’।
16 एपिसोड वाली इस कोरियन सीरीज़ में ज़िंदगी के वो तमाम फलसफे हैं जिन्हें हम किताबों में नहीं हर रोज का जीवन जीते हुए समझते हैं। हर वो चोट जब हम लड़खड़ाकर गिरते हैं, और वो चोट भी जिसे जानबूझकर दुनियादार लोग हमारे हवाले करते हैं। दर्द कितना ही गहरा हो, चोट कितनी भी बड़ी हो, जीवन का क्या विकल्प है सिवाय जीने के। उम्मीद टूटने पर हम क्या कर सकते हैं सिवाय एक नई उम्मीद उगाने के।
जो लोग ज़्यादा समझदार होते, उन्हें दर्द कम होता है या वो ज़्यादा मजबूत होते हैं ऐसा समझना ठीक नहीं है। असल में विकल्पहीनता उन्हें इसके सिवा कुछ होने ही नहीं देती। हालांकि चाहते वो भी हैं कि एक जरा सी खरोंच पर कोई थाम ले, कोई पैरों के छाले देखे और उसकी आँखें भर आयें, कोई दुख के आवेग में जब कुछ न सूझे तो गले लगकर रो पड़े, सर पर हाथ फिरा दे, बिना कुछ कहे आँखों में उतार दे ‘मैं हूँ, हमेशा रहूँगा/रहूँगी’ की आश्वस्ति।
ये दुनिया जीने लायक तभी बनेगी जब हमारे सुख और दुख साझे होंगे। जब कोई बिना किसी जताहट के चुपके से हमारी बरनी में चावल रख जाएगा, हम चौंक कर देखेंगे कि हमारे बहते आंसुओं को कौन पोंछ गया। ये कौन है जिसे हमारे दुख में हमसे ज़्यादा दुख होता है, और हमारे सुख में हमसे ज़्यादा ख़ुश।
चार मौसमों का खेल है जीवन। लेकिन इन चारों मौसमों में साथ निभाने का हुनर हमें सीखना है। हमें सीखना है मनुष्य होना, और मनुष्य होना, और मनुष्य होना। हमें सीखना है किसी की ख़्वाहिशों को पलकों में समेट लेना और उन्हें हक़ीकत का मोती बनाकर उसके माथे पर सजा देना।

कभी-कभी लगता है यह प्रेमिल मुस्कान जो 16 एपिसोड तक हर मौसमों के रंग देखते हुए पीढ़ियों में ट्रांसफर होती रहती है वह कोई यूटोपिया है। लेकिन अगले ही पल सर्वेश्वर की वह पंक्ति मुसकुराती है कि ‘सामर्थ्य सिर्फ इच्छा का दूसरा नाम है’।
मैं इस कहानी के बारे में नहीं लिख रही, लिखना चाहती भी नहीं, शायद लिख पाऊँगी भी नहीं। मैं उस असर को उतारकर रख रही हूँ जो लगातार पलकों के भीतर डब-डब कर रहा है। कल शाम एक दोस्त से मैंने कहा, ‘कितनी अच्छी बारिश हो रही है न 2 दिन से’ उसने हैरत से पूछा कहाँ? मैंने यहीं। उसने कहा बाहर तो धूप ही खिली रही दिन भर, रात भी कोई बारिश न थी। मैं हंस दी, चुप रही। असल में बारिश मेरे भीतर हो रही थी। उस बेचारे को नाहक परेशान किया।
माँ के लिए कविता लिखती, बेटी के लिए हर किसी से लड़ जाने वाली, टेबल सजाना नहीं, टेबल पलट देने की ताकीद देने वाली माँ, कभी साथ न छोड़ने वाले प्रेमी, प्रेमियों का साथ देने वाली गाँव की स्त्रियॉं, पहले परेशान करने वाली फिर भर अँकवार गले लगाने वाली सास, चुपके से मदद करने वाली सौतेली माँ, अपनी तमाम पूंजी को आँचल के कोने से छुड़ाकर बच्चों के साथ खड़ी दादी, चावल की बरनी भरते रहने वाले और ऊपर ऊपर गुस्सा दिखाते बुजुर्ग दम्पति, बच्चे, बच्चों के प्रेम और सामने से जीवन की मुश्किलों, गरीबी आदि के लिए माँ-बाप से नाराज़ होते बच्चों का अपने माँ-बाप के लिए कुछ भी कर जाने की इच्छा का एक ऐसा मीठा झरना है कि आप भर अंजुरी अपनी प्यास बुझा लीजिये।
ए-सुन और ग्वान-सुक एक दूसरे पर भरोसे की ऐसी सिंफनी है जो एक-दूसरे को हर हाल में जिलाए रहती है, उम्मीद बनाए रखती है। सपने देखते समय सिर्फ भरपूर सपने देखो । उन सपनों को कुदरत के हवाले कर दो। क्या पता कौन सा सपना हक़ीक़त बन लौट आए और मिल जाए एक पुरानी पगडंडी, कोई बिछड़ी हुई कविता या ए-सुन टीचर की जेब को प्यार से भर देती नरम हथेलियाँ।
ग्वान सुक का यह कहना, ‘इतने सुंदर चेरी के फूल खिले हैं, तुम इन्हें देखती क्यों नहीं, मेरे पैरों को ही देखती हो। और ए-सुन कहती है, ‘तुम्हारे पैर इसलिए देखती हूँ कि कहीं तुम गिर न जाओ’।
तो रुक जाओ और देखो इस दृश्य को...आइये तनिक रुक जाते हैं और हिंसा, प्रतिशोध, अहंकार, प्रतियोगिता से ब्रेक लेते हैं। थोड़ा जी लेते हैं...जीवन।
(सीरीज नेटफ्लिक्स पर है)
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