Wednesday, December 14, 2022

उपलब्धियों की बाबत


क्या तुमने उपलब्धि का चेहरा देखा है
वो कैसा होता है
क्या उसके चेहरे पर होती है
कोई गर्व की लकीर
आँखों में होती है चमक
और गर्दन पर पड़ता है
एक अलग किस्म का बल
थोड़ा इतराया
थोड़ा सकुचाया

क्या उपलब्धि का व्यक्तित्व बनता है
प्रशंसाओं से, बधाइयों से
तालियों के शोर से
हंगामाखेज खबरों से
स्पॉटलाईट से
कैमरों की चकाचौंध से

क्या उपलब्धि की फितरत है
कि वो आये और हाथ पकड़कर ले जाय
उस जमीन से उठाकर
जहाँ तुम पहले थे
कुछ माइक थमा दे
कुछ मंच
और कुछ शब्द गुच्छ

क्या उसे ग्रहण करना होता है  
विनम्रता का परिधान पहनकर 
और लगाना होता है सहजता का इत्र 
  
तो मैं किसी उपलब्धि को नहीं जानती

मेरे लिए तो उपलब्धि थी
उस गड़रिये का मेरे पास आना
मुझे कुछ गन्ने देना 
जो लाया था वो 
किसी किसान से मांगकर
कि एक रोज उसने पढ़ी थी मेरी कविता
समोसे में लिपटे अख़बार में
जो लिखी गयी थी गड़रिये पर
वो बस मुझे एक बार छूना चाहता था
उस गड़रिये की प्रेमिल आँखें 
हैं मेरे लिए उपलब्धि का चेहरा 

लाल रिबन से सजी स्कूल जाती लड़कियाँ
जिनकी आँखों में भरे थे सपने
आसमान में उड़ने के
न कि किसी सफेद घोड़े वाले राजकुमार के
उनकी उस अल्हड़ चाल 
और खिलंदड़अंदाज का चेहरा
मिलता है जीवन की उपलब्धि के चेहरे से

वो स्त्रियाँ जब भर उठती हैं कराह से
दौड़ते-भागते
थमती हैं पल भर को
किसी सुबह को जगाकर कहती हैं, 'तुम मेरी हो'
अहीर भैरव गूँज उठता है फिज़ाओं में
चाय में घुलने लगता है
खुद से की गयी मोहब्बत का रंग
वो लम्हा, हाँ बस वही लम्हा
जीवन की उपलब्धि लगता है

किसी के सीने से लिपट जाने की
जी भर के रो लेने की इच्छा
प्रेम से भर उठने और
प्रेम में डूबे रहने की इच्छा
किसी के दिल में बस जाने
किसी को दिल में बसा लेने की इच्छा
का चेहरा मिलता है उस उपलब्धि से
जिसे मैं जानती हूँ

कि जब कोई प्रशंसाओं के गुलदस्ते और 
तालियों के शोर की ट्रॉफी लिए
करीब आता है
तो आँखें भर आती हैं
कि कहीं छुप जाना चाहती हूँ
पैर के अंगूठे से कुरेदती हूँ जमीन
संकोच से काँप उठती हूँ
भाग जाना चाहती हूँ दूर कहीं...

गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस 
सपनों का राजकुमार 
मेरे लिए उपलब्धियों से मेल नहीं खाता 
कि वो तो बस सुबह का बोसा 
मोगरे की ख़ुशबू, 
बारिश की बूँदें और
अजनबी लोगों के दुःख में 
शामिल हो पाने की इच्छा 
से बनता है.

3 comments:

  1. उपलब्धि की कोई वस्तुनिष्ठ समझ या कि परिभाषा हो भी नहीं सकती.

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  2. उपलब्धि की कोई वस्तुनिष्ठ समझ या कि परिभाषा हो भी नहीं सकती.

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