हरे रंग की यात्रा पूरी कर चुकी पत्तियां तुम्हारे आसपास कोई सुनहरा घेरा बना देंगी. उन पीली पत्तियों के पास जीवन के हर सवाल का जवाब मिलेगा. किसी भी पेड़ पर चढ़कर इतराती, खिलखिलाती लताओं में इकसार होकर निखरने का मन्त्र मिलेगा. अपनी हथेलियों में सूरज की किरनें सहेजे जंगल से पूछना कभी उम्मीद के उन जुगनुओं की बाबत जो कैसे भी गाढे अँधेरे में चमकते रहते हैं.
जंगल से गुजरना जंगल के क़रीब होना नहीं है ठीक वैसे ही जैसे किसी व्यक्ति के पास होना उसके क़रीब होना नहीं है. अपनी सुबहों में कुछ खुद को खो रही हूँ, कुछ खुद से मिल रही हूँ.
सूरज की पहली किरन का बोसा मुझे लजा देता है. मेरे चलने की रफ्तार तनिक धीमी पड़ती है...फिर आसमान देखती हूँ और मुस्कुराकर रफ्तार थोड़ी सी बढ़ा लेती हूँ. चलने की नहीं, जीने की.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर सृजन
ReplyDeleteआलेख पढ़ कर ही सुखद अहसास से मन भीतर तक भीग गया।... 'ठीक वैसे ही जैसे किसी व्यक्ति के पास होना उसके क़रीब होना नहीं है' -बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति , आदरणीय ।
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