Sunday, August 7, 2022

मिलेना के नाम काफ़्का के ख़त




अप्रैल 1920
Meran-Untermais, Pension Ottoburg

प्यारी मिलेना,
पिछली एक रात और दो दिन से बरसात की जो झड़ी लगी हुई थी न, अब वो रुक गयी है. हाँ हाँ, यह कुछ देर के लिए ही रुकी होगी शायद फिर भी ऐसा लग रहा है बरसात के इस थमने को क्यों न सेलिब्रेट करूँ. और देखो, मैं तुम्हें ख़त लिखते हुए ऐसा कर रहा हूँ. सच कहूँ, बारिश भी अच्छी लग रही है यहाँ. तुम जानती हो मैं परदेस में हूँ. हालाँकि इतना परदेस भी नहीं, लेकिन हाँ, परदेस तो है. यहाँ अच्छा लग रहा है. अगर मैंने सच में ठीक-ठीक महसूस किया था तो उस खूबसूरत सी इकलौती मुलाकात में तुम्हारी ख़ामोशी किसी संगीत की तरह महसूस हो रही थी. तुम भी विएना में खुश थीं. हालाँकि बाद के हालात उस ख़ुशी की राह में आ आये जरूर. लेकिन सच कहो मिलेना, क्या तुम परदेस में होकर जो अजनबियत होती है उसका सुख महसूस नहीं करतीं? (हालाँकि हो सकता है यह बात थोड़ा बुरा महसूस कराये कि ऐसे कोई सुख होने ही नहीं चाहिए.)

मैं यहाँ एकदम ठीक से रह रहा हूँ. इस नश्वर शरीर को कहाँ ज्यादा देखभाल की जरूरत है. मेरे कमरे की जो बालकनी है न वो एक खूबसूरत बागीचे में खुलती है. फूलों की लताएँ खूब बढ़ आई हैं और उन्होंने बालकनी को लगभग ढंक लिया है.
 
एक बात बताऊँ यहाँ का शाकाहारी बहुत अजीब सा है. और यहाँ प्राग में इतनी ज्यादा ठंड है कि पास में जो पानी का पोखर है वो लगभग जम चुका है. मेरी बालकनी के सामने फूल धीरे-धीरे खिल रहे हैं. यहाँ इस बागीचे में सूरज की रौशनी खूब अच्छे से आती है शायद इस कारण भी फूलों की खिलने की अलग ही रंगत है. छिपकलियाँ, चिड़ियाँ अक्सर यहाँ मेरे आसपास टहलती रहती हैं. मैं तुम्हें यहाँ के बारे इस शहर के बारे में सब कुछ विस्तार से बताना चाहता हूँ. तुमने अपने पिछले ख़त में लिखा था कि तुम्हें सांस लेने में कुछ परेशानी हो रही है. मुझे लगता है तुम अगर यहाँ हो तो तुम्हें बहुत राहत मिलेगी.

बहुत सारे प्यार के साथ!
फ्रान्ज़ काफ्का

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