नई किताब
***************
क़रीब 100 बरस पहले वर्जीनिया वुल्फ़ ने लिखा था, "Look within and life it seems is far from being like this." भीतर देखो और पाओगे कि जीवन उससे काफ़ी अलग है जो दिखता है।
जब बाहर सब कुछ बंद था, तब प्रतिभा कटियार ने अपने भीतर देखने के अपने प्रिय काम को कुछ और समय दिया। उसका नतीजा है- बिना किसी को संबोधित किए लिखी गईं ये चिटि्ठयां - कुछ डायरी, जैसी, लेकिन ज़्यादा ख़तों जैसी। इन चिटि्ठयों को पढ़ते हुए लेखिका के भीतर का कोमल संसार तो खुलता ही है, बाहर पसरी दुनिया को भी एक नई-तरल आंख से देखने की इच्छा पैदा होती है। 'मारीना' जैसी किताब लिखने के बाद प्रतिभा ने फिर साबित किया है कि वे भाषा की उंगली पकड़ कर मन के बीहड़ कोनों में घूमना जानती हैं और कभी अपनी पीड़ा से, कभी अपने प्रेम से, कभी अपनी स्मृति से, कभी अपने अकेलेपन से और कभी पूरे पर्यावरण के संग विहंसती हुई सामूहिकता से जीवन के उन कोनों को प्रकाशित कर डालती हैं जो शायद हम सबके भीतर होते हैं लेकिन जिन्हें देखना-पढऩा-खोजना हम भूल जाते हैं- भूल चुके हैं। यह किताब सुंदर गद्य से नहीं, उजली मनुष्यता से बनी है।- प्रियदर्शन
***************
https://www.amazon.in/dp/B09PJB1PR2?ref=myi_title_dp
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
प्रतिभा कटियार जी की नई पुस्तक "वह चिड़िया क्या गाती होगी" के बारे में बहुत अच्छी सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुति के लिए धन्यवाद आपका और प्रतिभा जी को नयी पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर समीक्षा
ReplyDeleteगागर में सागर सी सुन्दर समीक्षा पुस्तक की। हार्दिक बधाई प्रतिभा जी
ReplyDeleteप्रतिभा कटियार जी की पुस्तक "वह चिड़िया क्या गाती होगी"
ReplyDeleteपर गहन समालोचक दृष्टि, समीक्षा कम शब्दों में इतनी धार दार है सीधी हृदय तक उतर कर पुस्तक के प्रति अनुराग उत्पन्न कर रही है, प्रज्ञा की गागर से सागर भरना शायद यही है।
साधुवाद।
लेखिका एंव समीक्षक दोनों को बधाई।