एक समय था जब मैं प्यार में मर जाना चाहती थी. एक वक़्त है जब मैं प्यार को पी जाना चाहती हूँ. एक वह वक़्त था जब बेज़ारी थी ज़िन्दगी से, एक ये वक़्त है जब यारी है ज़िन्दगी से. सुबहों को घंटों परिंदों से बातें करते हुए महसूस होता है मानो मेरे भी पंख उग आये हों. उनके साथ मैं भी उड़ती जाती हूँ. पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर पर राग भैरवी बजा रहे हैं. पहाड़ियां उन मधुर लहरियों में डूबती जा रही हैं.
मुझे इन दिनों अपने आसपास कोई नजर नहीं आता, कोई महसूस नहीं होता. ज़रूरत भी नहीं महसूस होती. वह जो खाली केंद्र था न, वह अब अपनेपन की महक से भर गया है. बाहर कुछ भी नहीं, सब भीतर है. उस भीतर तक पहुँचने के लिए हम बाहर भटकते फिरते हैं. सेहरा, पहाड़, दरिया पार करते हैं, लेकिन मिलता है वो किसी पेड़ के नीचे ही, एक चम्मच खीर खाकर या किसी कुटिया में झूठे बेर खाकर.
हम सबको जूठे बेरों की तलाश है. कोई इतने प्यार से चखकर रखे तो. कोई इतने प्यार से खीर बनाकर लाये तो. वह खीर की चाह थी जिसने खीर को ज्ञान का माध्यम चुना, वो चाह जिसे दुनिया भूख कहती है. असल में हमें अपनी भूख तलाशनी है. जिन चीज़ों के पीछे भाग रहे हैं, जिनके लिए जान दे रहे हैं वह हमारी भूख हैं ही नहीं. जो भूख है वहां हम पहुंचे ही नहीं. वहां पहुँचने की यात्रा ही जीवन है. मुझे मेरी भूख मालूम है. मुझे बारिश चाहिए (बेमौसम नहीं), मुझे ढेर धूप चाहिए, अंजुरी भर सर्दी चाहिए, अमलतास चाहिए, मोगरे का गजरा चाहिए, सामने मुस्कुराती जूही और हरसिंगार की गमक चाहिए.
मुझे इंतज़ार चाहिए...यही मेरी चाह है. मेरी इस चाह को परिंदे समझते हैं. तुम भी तो परिंदे ही हो. उड़ते-उड़ते जा बैठे हो किसी और डाल पर. तुम कनखियों से देखते हो, मुस्कुराते हो. मैं पुकारती नहीं, तुम आते नहीं. दूर जाकर तुम ज़्यादा क़रीब जो आ गये हो. मेरी शामों में मेरी सुबहों में तुम घुले हुए हो. डाल कोई भी हो तुम्हारी, दिल मेरे ही पास है जानती हूँ. बारिश पंचम सुर में आलाप ले रही है, सुन रहे हो न तुम?
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना,
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