Tuesday, May 18, 2021

स्मृति शेष- लाल बहादुर वर्मा


'है' से 'था' की दूरी तय करने में
सिर्फ समन्दर भर पानी नहीं लगता
आकाश भर सूनापन भी लगता है

सिर्फ जिए हुए लम्हों का इत्र ही नहीं लगता 
जीने से छूट गये लम्हों की हुड़क भी लगती है

सिर्फ धरती भर धीरज ही नहीं लगता  
स्मृतियों की सीढ़ी भी लगती है 
जो सितारा बने व्यक्ति तक पहुँचती है 

'है' से 'था' की दूरी तय करने को  
एक लम्बी हिचकी लगती है 
और ढेर सारा सूख चुका सुख लगता है. 

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