दूधिया रौशनी के झरने ने
भर लिया आलिंगन में
पीपल की पत्तियों सा
घना होता गया मौन
हरियाली के मैदान में
कुलांचे भरने लगा हृदय
कैक्टस फूलों से भर उठे
मुस्कुराने लगे बबूल के फूल
रात अमावस की थी लेकिन
एक जरा थामना भर था अपना हाथ
रौशनी ही रौशनी बिखरने लगी.
भर लिया आलिंगन में
पीपल की पत्तियों सा
घना होता गया मौन
हरियाली के मैदान में
कुलांचे भरने लगा हृदय
कैक्टस फूलों से भर उठे
मुस्कुराने लगे बबूल के फूल
रात अमावस की थी लेकिन
एक जरा थामना भर था अपना हाथ
रौशनी ही रौशनी बिखरने लगी.
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 1 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रात अमावस की थी लेकिन
ReplyDeleteएक जरा थामना भर था अपना हाथ
रौशनी ही रौशनी बिखरने लगी.
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमस्कार आपको
सुंदर आशावादी चिंतन।
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