Sunday, July 5, 2020
स्मृतियाँ हरी ही रहती हैं
वो जो अटका हुआ है कोरों पर
कितने बरसों से
ढलका नहीं कभी
कि ढलक जाने की मोहलत ही कहाँ थी
ओ सावन, अबके आना
मिलना उस
कोरों पर ठहरे हुए सावन से
कि स्मृतियाँ हरी ही रहती हैं
और आँखें भरी ही रहती हैं हरदम.
1 comment:
Shivam Bisht
July 28, 2020 at 12:57 PM
vary nice good information
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vary nice good information
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