Thursday, July 2, 2020

उत्सव निर्णय लेने का



उन्हें न निर्णय लेना आता है, न किसी के निर्णय का सम्मान करना आता है. न रिश्ते बनाना आता है, न उन्हें निभाना आता है, और अगर रिश्तों में कोई रुकावट आ ही जाए तो उसके साथ डील करना तो बिलकुल नहीं आता. और जिन्हें यह आ जाता है उनसे सीख ही लें यह भी नहीं आता. उन्हें सिर्फ आता है, ज्ञान देना, सद्भावना के नाम पर चुभन देना. समाज में जितनी कुंठा प्रेम को लेकर, प्रेम विवाह को लेकर है उससे कहीं ज्यादा कुंठा है तलाक को लेकर...लेकिन देवयानी भारद्वाज इन तमाम मीडियोक्रेसी के मुंह को अपनी हिम्मत, मजबूत इरादों और स्नेहिल मुस्कुराहट से बंद करती हैं...जिसे हम तलाक देते हैं उससे दुश्मनी ही हो ऐसा भी क्यों सोचता है कोई. वो जो बीता वक़्त था वो इतना मीठा था कि उसे भूलना क्यों. अगर निर्णय साथ रहने का सेलिब्रेट करते हैं तो अलग होने का क्यों नहीं करते.

नासूर बन चुके रिश्तों को ढोते हुए, उसकी घुटन में बिलबिलाते, रिश्तों से इधर-उधर मुंह मारते लेकिन झूठी पारिवारिक तस्वीरों के परदे डालते हुए लोगों पर सच में दया ही आती है. उन्होंने तो उन प्रेमिल दिनों का स्वाद शायद चखा ही नहीं जिन्हें देवयानी जी भरके जी चुकी है. मुझे ऐसे ही इस लडकी से प्यार नहीं, इसके संघर्ष, इसकी मुस्कुराहटों को मोनालिसा की मुस्कान से ज्यादा खूबसूरत बनाते हैं..

तलाक के बारे में देवयानी का लिखा बार बार पढ़ा जाना चाहिए, पढ़ाया जाना चाहिए.-

देवयानी भारद्वाज- 

यदि आपने कोई निर्णय लिया, जिसके बाद आप अधिक आत्मनिर्भर हुए, आप ज्यादा खुश रहने लगे तो आप उसका जिक्र करेंगे या उसके जिक्र से बचेंगे?

 जब भी तलाक का उल्लेख करती हूं मुझे कई शुभकांक्षी मित्र संदेश भेजते हैं कि इसका जिक्र न किया करूं। उनके कहने में मेरे प्रति सहानुभूति होती है। शुक्रिया दोस्तो, लेकिन अब मैं उस जगह से बहुत आगे निकल गई हूं, जहां यह सहानुभूति मेरे काम आए। मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसे मित्र मेरी इस पोस्ट को अन्यथा नहीं लेंगे।

मैं यह बताना चाहती हूं कि तलाक मेरे जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण फैसला था। मैं तो उसकी हर सालगिरह सेलिब्रेट करना चाहती हूं। इसमें उस व्यक्ति के लिए भी कोई तिरस्कार नहीं जिससे तलाक लिया। मैं अब भी उसका जिक्र प्यार के साथ करना चाहती हूं। जो उससे शिकायतें हैं, वे अपनी जगह। मुझे अब भी उसके साथ की कई तस्वीरें पसंद हैं। तलाक का जिक्र न करने का मतलब उसके साथ जिए जीवन का भी जिक्र न करना हो जाता है, जबकि हमने भरपूर जीवन जिया है। यह तो मेरा अपना कारण है इस पोस्ट को लिखने का।

दूसरे यदि आप किसी स्त्री को उसके एक निर्णय के उल्लेख से रोकते हैं तब आप उन बहुत सारी औरतों को वह निर्णय लेने से भी रोकते हैं। किसी बात का उल्लेख न करने का अर्थ है आप यह बताना चाहते हैं कि वह निर्णय शर्मिंदगी लेकर आता है। मैं शर्मिंदा नहीं हूं, खुश हूं। आप यदि किसी को शादी की तस्वीरें शेयर करने पर नहीं कहते कि इन्हें शेयर मत करो, जन्मदिन पर बधाई देते हैं तो तलाक पर यह छुपमछुपाई क्यों! ऐसे ही परिवारों से आने वाले बच्चे स्कूल में मेरे बच्चों से कहते हैं, "ओह! तुम्हारे पेरेंट्स का डिवोर्स हो गया। किसी को बताना नहीं!" मेरे बच्चे मुझ पर गर्व करते हैं और अपने पापा से प्यार। मैं अपने फैसले पर शर्मिंदा रह कर अपने बच्चों को पिता से प्रेम करना नहीं सिखा सकती थी।

मैं चाहती हूं कि लड़कियां सड़ चुके रिश्तों की लाश ढोने की बजाय आगे बढ़ें, अपने फैसले करें। जीवन किसी भी तरह सरल और आसान नहीं है। मुश्किलें अपनी चुनी हुई होती हैं तो जीना अच्छा लगता है।

अंत में यह कहना चाहती हूं कि- She lives happily ever after the divorce. Please celebrate her!

1 comment:

  1. बहुत सही और ज़रूरी बात लिखी है देवयानी जी ने। अगर रिश्ता मर चुका है तो उसकी लाश ढोने से तकलीफ़ ही होगी।

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