Saturday, February 22, 2020

प्यार वाली शाम मारीना के नाम


नरेंद्र सिंह नेगी में उत्तराखंड के लोगों की जान बसती है. उन लोगों में अब मैं भी हूँ. जब मैं उत्तराखंड आई तो मैंने पहला पहाड़ी गीत जो सुना वो था 'ठंडो रे ठंडो, मेरे पहाड़ को पानी ठंडो, हवा ठंडी...' यह गढ़वाली गीत है और मुझे इस समूचे गीत में मेरे पहाड़ का पानी ठंडा है, हवा ठंडी है के सिवा कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था लेकिन यह गीत मुझे झुमा रहा था, न समझ आने वाली गढ़वाली भी मिसरी सी कान में घुल रही थी और एक रिश्ता बन रहा था नए संसार से, संस्कृति से, बोली से, भाषा से. साहित्य संगीत और संस्कृति में अपनेपन की चुम्बकीय शक्ति होती है जोड़ने की. नरेंद्र सिंह नेगी ने इसी शक्ति का प्रयोग लोगों के दिलों में बसने के लिए किया, समाज को दिशा देने के लिए किया.

मेरी खुशकिस्मती है मुझे उनका स्नेह मिला. उनसे जब भी मुलाकात हुई बेहद स्नेहिल, आत्मीय याद रह जाने वाली मुलाकातें हुईं. ऐसी ही एक शाम दो दिन पहले फिर मीठी मुलाकातों वाली गुल्लक में जमा हुई. इस मुलाकात में गिर्दा का जिक्र भी हुआ और शेखर पाठक जी का भी, गणेश देवी का भी. बोली और भाषा के बीच किस तरह लकीरें खींची गयी हैं जबकि कोई लकीर है नहीं जैसी बातों से गुजरते हुए मारीना की यात्रा तक भी पहुंची. उन्हें यह जानकार बहुत अच्छा लगा कि यह मौलिक काम है. उन्होंने कहा, जितना भी रूसी साहित्य हिंदी में उपलब्ध है अनुवाद ही है ज्यादातर, मौलिक काम तो बहुत विशेष हुआ. जल्द वो किताब पढ़ेंगे. लेकिन पढने से पहले उन्हें बहुत कुछ जानना था किताब के बारे में सो खूब बातें हुईं.

इस मीठी मुलाकात वाली शाम का क्रेडिट तो सुभाष को ही जाता है वैसे.

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