Saturday, January 11, 2020

मारीना- विमोचन 5 जनवरी 2020



5 जनवरी 2020 को शाम 3 बजे मारीना की जीवनी का अनौपचारिक विमोचन हुआ. अभी शाम बीती भी नहीं थी कि जेएनयू में हुए बर्बर हमले की खबर आई. मन बुझ गया. कोई तस्वीर, कोई बात साझा करने का मन ही नहीं हुआ.

सोचती हूँ मारीना जीवन भर जैसे राजनैतिक उथल-पुथल से जूझती रही आज इत्ते बरस बाद जब उसकी किताब आई है तब भी हालात कुछ वैसे ही हैं. यह इत्तिफाक ही है शायद. इत्तिफाक यह भी है कि जिस जेएनयू में पढ़ने का मेरा सपना अधूरा रह गया था उसे मारीना ने ही पूरा कराया. मैं वहां पढ़ी नहीं, लेकिन मारीना के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की इच्छा बिना वरयाम जी से मिले, बिना जेएनयू जाए तो पूरी हो ही नहीं सकती थी. फिर उनकी मदद से जेएनयू की रशियन डिपार्टमेंट की लाइब्रेरी में खोज करना, कैंटीन में खाना, गंगा ढाबे पर बैठकर चर्चाएँ करना यह सब संभव हुआ. अधूरा सा इश्क़ था जो मारीना ने पूरा कराया. सोचती हूँ जब कुछ ही दिन जेएनयू में रहकर मैं इस कदर इस जगह से जुड़ी हूँ तो उनका क्या जो यहाँ पढ़े हैं, पढ़ रहे हैं.


जेएनयू के फूल भरे रास्तों पर भागते हुए वरयाम जी से मारीना के किस्से सुनना, वहां की दीवारों पर लिखी इबारतों को देखना महसूस करना कि किस तरह दीवारें दीवारें नहीं रहतीं, इन्कलाब बन जाती हैं इश्क़ बन जाती हैं...

बहुत से दोस्त विमोचन की तस्वीरों की बाबत पूछ रहे हैं. न यह किताब सिर्फ किताब रही न विमोचन. सब प्रेम और स्नेह से रचा गुंथा ही है. दोस्तों ने ही सब सहेजा, दोस्त खुद आये, किताबें खरीदीं, आटोग्राफ लिए, महसूस कराया कि कितनी शिद्दत से वो सब साथ हैं, खुश हैं.

प्रियदर्शन जी ने स्नेहिल टिप्पणी रखी किताब पर, सुभाष मुंह मीठा कराते रहे और बच्चे हाथ थामे रहे. ज्योति और देवयानी अलग कहाँ थीं मुझसे कि मेरी नर्वसनेस वो ही तो संभाल रही थीं.

मेरे लिए यह एक बेहद स्नेहिल शाम थी. दोस्तों की आँखों में जो स्नेह था वो औपचारिक बधाई भर नहीं था वो उससे बहुत ज्यादा था. आलोक, संज्ञा, प्रज्ञा दी, सुजाता, रश्मि रावीजा दी, दिनेश श्रीनेत, अनुपमा जी, रजनी मोरवाल, नील डोगरा, गुनगुन, ऋषभ, शुभंकर, अनीता दुबे, शालिनी, विमल कुमार, अनुराधा बेनीवाल, अबेम, चन्दर, पूजा पुनेठा, प्औेरिका, देवेश,और बहुत सारे लोग...सबने मिलकर एक मामूली व्यक्ति को ख़ास महसूस कराया.

सबसे ख़ास था बिटिया का अपनी पाकेटमनी से पहली किताब खरीदना और किसी का भी किताब मुझसे न माँगना बल्कि खरीदकर मुझसे आटोग्राफ लेना. मैं जानती हूँ यह सिर्फ स्नेह है सबका वरना आटोग्राफ जैसा तो कुछ था नहीं...सबके स्नेह से भीगी हुई हूँ...

1 comment:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चार्च आज सोमवार  (13-01-2020) को  "उड़ने लगीं पतंग"  (चर्चा अंक - 3579)  पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है 

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