Monday, August 12, 2019

गोवा से आई पुकार और प्यार



यह मेरी नहीं लहरों की बात है. उन लहरों की जिन्होंने मुझे हमेशा हर मुश्किल वक़्त में सहेजा है. कभी पास से, कभी दूर से. नहीं मालूम इन लहरों के इश्क़ में कबसे हूँ. तबसे जब इन्हें छूकर देखा भी नहीं था शायद. न नज़र से, न हाथ से. समन्दर की लहरों की बात कर रही हूँ. सिनेमा में देखे समन्दर थे या उपन्यासों और कहानियों में पढ़े समन्दर. कब कैसे मुझे समन्दर से इश्क़ हुआ पता नहीं. समन्दर को पहली बार देखने का अवसर मिला नवम्बर 2011 में. शायद समन्दर ने मुझसे मिलना तब तक के लिए मुल्तवी किया था जब तक उससे मिलना मेरे जीने की अंतिम जरूरत न रह जाय. कुछ भी योजनाबद्ध तरह से नहीं होता. कुछ भी नहीं सचमुच. जन्म भी नहीं, मृत्यु भी नहीं, जीवन के युद्ध भी नहीं और समर्पण भी नहीं. जीवन का यह समय युद्ध का नहीं था. समर्पण का था. ऊँहू ! समर्पण ठीक शब्द नहीं, ‘गिवअप’ ठीक शब्द है. दोनों में काफी फर्क है. मैं एकदम ‘गिवअप मोड’ में थी. तभी दोस्तों ने गोवा चलने का प्लान बनाया और मैं गोवा में थी. इत्तिफाक ही होगा कि जिन दोस्तों ने प्लान किया था वो खुद ही न आ सके थे और मैं और माधवी ही पहुंचे थे गोवा. शायद हम दोनों का मिलना और समन्दर से मुलाकात इससे अच्छे ढंग से नहीं हो सकती थी. हम दोनों पहली बार मिली थीं. हम दोनों जिन्दगी से जूझते-जूझते टूट रही थीं, हम दोनों मुश्किलों के बारे में बात करना पसंद नहीं करती थीं और हम दोनों समन्दर से बेपनाह प्यार करती थीं.

हमने आधी आधी रात तक गोवा के समन्दर से बातें की थीं, गोवा का चप्पा-चप्पा छानते हुए हम खुद को तलाश रहे थे. और जब हम मुठ्ठियों से समेट-समेट कर समन्दर जिन्दगी में भरकर वापस लौटे थे तो हम वो नहीं थे, जो हम गए थे. समन्दर ने हमसे उलझनें लेकर, हिम्मत और भरोसा देकर वापस भेजा था. लौटने के बाद उसी हिम्मत और भरोसे के साथ जिन्दगी को नयी राहों पर रख दिया था और वही नयी राहें आज तक हाथ थामे चल रही हैं.

इसके बाद कई बार समन्दर मिले, अलग-अलग नामों से, अलग-अलग देश में, प्रदेशों में. लेकिन 2018 के आखिरी में जब एकदम अचानक एक बार फिर से गोवा ने आवाज दी तो मैं चौंक गयी. इस वक़्त, गोवा? सोचना भी नामुमकिन था. जिन्दगी एक साथ कई खानों में उलझी और अटकी हुई थी. पहले से इतनी उलझनें थीं कि उनमें संतुलन बनाना ही मुश्किल हो रहा था और उस वक़्त गोवा से आई यह आवाज? आखिर क्या मायने हैं इसके. जब मोहब्बत आवाज दे तो इनकार कर पाना कितना मुश्किल होता है यह कोई आशिक मन ही जान सकता है. लेकिन हाँ कहना भी आसान नहीं था. गोवा से आई यह पुकार मुझे सोने नहीं दे रही थी. इस बार जब यह पुकार आई थी तब जिन्दगी में बहुत कुछ बदल चुका था. सचमुच बहुत कुछ. पहले आई पुकार उदासियाँ पोछने और हिम्मत देने के लिए थीं लेकिन इस बार हौसलों को परवाज देने, पहचान देने और जिन्दगी की मुश्किलों से लड़ने का ईनाम देने को थी. यह बुलावा था मेरी एक कविता 'ओ अच्छी लड़कियों' का इंटरनेशल सिरिंडपिटी आर्ट फेस्टिवल में शामिल किये जाने पर. इस कविता को मेवरिक प्ले लिस्ट में जगह मिली थी जिसे संगीतबध्ध किया था मेरी प्रिय शास्त्रीय संगीत सिंगर और संगीतकार शुभा मुद्गल और अनीश प्रधान ने. यह सब इतना अचानक, इतना अनायास था कि यकीन सा नहीं हो पा रहा था. यह मेरे लिए ऐसा समय था जैसे खेल रही हो जिन्मेदगी मेरे संग. जैसे-जैसे गोवा जाने की तारीखें करीब आती जा रही थीं वैसे-वैसे न जाने देने की स्थितियां मजबूत होती जा रही थी.

इश्क़ की पुकार में बहुत ताकत होती है. आखिर मैं गोवा के लिए निकल ही पड़ी ठीक वैसे ही जैसे लड़की भागती है मंडप से उठकर सारे बंधन तोड़कर. इसमें जोखिम भी बहुत होता है और रोमांच भी. आखिर मैंने गोवा को हाँ कर दी थी. मेरे इस हाँ कहने में यानी लड़की को जिन्दगी की तमाम दुश्वारियों वाले मंडप से भगाने में मेरे भाई, भाभी और दोस्त ज्योति का बड़ा रोल रहा. लहरों की ताल पर थिरकता मन मुम्बई एयरपोर्ट पर उतरा तो खुश था. मुम्बई से एक दोस्त को मैंने साथ चलने के लिए मना लिया था. हमने मुम्बई से गोवा ट्रेन से जाना चुना था.

  जारी...

(गोवा डायरी, दिसम्बर 2018 )

3 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति लहरों से इश्क मुम्बई से गोवा तक बेहतरीन

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 13 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    सूचना में देरी के लिये क्षमा करें।

    सधन्यवाद।

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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